नई दिल्ली, 02 जनवरी 2025: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अमीर (अध्यक्ष) सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने जमाअत मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आगामी केंद्रीय बजट के लिए व्यापक सुझाव दिए। मीडिया को ब्रीफ करते हुए, उन्होंने कहा, “हम सरकार से एक परिवर्तनकारी केंद्रीय बजट 2025-26 पेश करने का आग्रह करते हैं जो बेरोजगारी, असमानता और गरीबी के ज्वलंत मुद्दों को संबोधित करता हो। देश आजीविका संकट से जूझ रहा है, जिसका प्रमाण 45% युवा बेरोजगारी, 20% जनसंख्या गरीबी में तथा कृषि विकास दर 2.8% (सीएमआईई) पर स्थिर रहना है। हम चाहते हैं कि सरकार व्यवसाय-केंद्रित नीतियों से हटकर नागरिक-केंद्रित समाधानों की ओर बढ़े, जिससे कल्याण बढ़े, मांग बढ़े और समावेशी विकास को बढ़ावा मिले। उपेक्षित वर्गों और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को मजबूत किया जाना चाहिए।”
आगे विस्तार से बताते हुए सैयद सदातुल्लाह ने कहा, “शहरी बेरोजगारी से निपटने के लिए मनरेगा के बजट में की गई 33% कटौती को वापस लिया जाए तथा शहरी समकक्ष योजना लागू की जाए, नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि प्रसंस्करण और जैविक खेती के लिए “ग्रामीण रोजगार केन्द्र” स्थापित की जाए; शहरी स्तर की सुविधाओं के साथ उच्च गुणवत्ता वाले ग्रामीण टाउनशिप विकसित की जाए, एमएसएमई को पुनर्जीवित करने और रोजगार सृजन को बढ़ाने के लिए सब्सिडी वाले ऋण, तकनीकी उन्नयन, कर प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के समर्थन के लिए संसाधन आवंटित किये जाएं, प्रोत्साहन को केवल उत्पादन (पीएलआई) के बजाय रोजगार सृजन से जोड़ा जाए, युवाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुसलमानों और अविकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 4% तक बढ़ाया जाए, आयुष्मान भारत को सार्वभौमिक कवरेज तक विस्तारितकिया जाए, मध्यम वर्ग को कवरेज प्रदान किया जाए तथा इसमें बाह्य रोगी देखभाल, दवाएं और निदान शामिल किया जाए। शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 6% आवंटन के साथ “मिशन शिक्षा भारत”की शुरुआत हो, आरटीई के अंतर्गत माध्यमिक शिक्षा को शामिल किया जाए, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में सुधार हो तथा राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए वित्त पोषण में वृद्धि किया जाए, मुस्लिम छात्रवृत्ति को पुनर्जीवित की जाए, छात्रों और उद्यमियों के लिए ब्याज मुक्त ऋण निधि की स्थापना हो तथा अल्पसंख्यक बहुल जिलों में कौशल क्षेत्र स्थापित किया जाए। एससी/एसटी समुदायों के लिए “भूमि सशक्तिकरण कार्यक्रम” शुरू किया जाए, एससी/एसटी उद्यमों से सार्वजनिक खरीद को प्राथमिकता दी जाए और नौकरियों के लिए कर प्रोत्साहन प्रदान किया जाए। ऋण राहत, ब्याज मुक्त ऋण, गारंटीकृत एमएसपी, विस्तारित फसल बीमा, सिंचाई परियोजनाएं और डिजिटल भूमि रिकॉर्ड का प्रस्ताव शामिल हो। कमजोर समूहों के न्यूनतम आय और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डीबीटी और आधार द्वारा समर्थित चरणबद्ध यूबीआई योजना शुरू किया जाए।“
प्रेस मीटिंग को संबोधित करते हुए, जमाअत के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने बताया कि कैसे जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने भारत की सांप्रदायिक सद्भाव और विविधता में एकता की विरासत की रक्षा के लिए 2025 को “सांप्रदायिक सद्भाव, विश्वास और समझ का वर्ष” के रूप में नामित करने की योजना बनाई है। उन्होंने कहा, हजारों वर्षों से हमारे धर्मगुरुओं और संस्थाओं ने इस विरासत को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए इस दीर्घकालिक विरासत को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। सांप्रदायिकता और असामंजस्य ने हमारे राष्ट्र को गंभीर नैतिक, आध्यात्मिक और भौतिक क्षति पहुंचाई है, तथा सदियों से हमारी ताकत रही एकता के ताने-बाने को नष्ट कर दिया है। अब समय आ गया है कि हम इस चुनौती को पहचानें और इससे निपटने के लिए सामूहिक रूप से काम करें। सहिष्णुता सद्भाव की आधारशिला है। विभिन्न दृष्टिकोणों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति बढ़ाकर तथा गलत कार्यों (यहां तक कि अपने समुदाय द्वारा भी किए गए गलत कार्यों) को अस्वीकार कर हम एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं। केवल सामूहिक जवाबदेही और सहानुभूति के माध्यम से ही हम पूर्वाग्रहों को समाप्त करने और समावेशिता को बढ़ावा देने की आशा कर सकते हैं। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद विभिन्न अंतर-धार्मिक और शांति पहलों जैसे धार्मिक जन मोर्चा और सद्भावना मंच के माध्यम से इस दृष्टिकोण की दिशा में अथक प्रयास कर रही है। ये मंच लोगों को एक साथ लाकर संवाद करने, एक-दूसरे को समझने और एकता के पुल बनाने में सहायक रहे हैं।हैं।यह धार्मिक और सामाजिक नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे आगे आएं और देश में शांति और सद्भाव स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाएं। हम प्रत्येक नागरिक से इस प्रयास में शामिल होने का आह्वान करते हैं।आइए हम 2025 को एक निर्णायक वर्ष बनाएं, जहां हम सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें, न्याय और भाईचारे के मूल्यों को बहाल रखें, तथा विश्वास और आपसी समझ के भविष्य की नींव डालें।
उत्तर प्रदेश के संभल में मुस्लिम समुदाय पर बढ़ते उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त करते हुए, जमाअत के उपाध्यक्ष मलिक मोआतसिम खान ने कहा, एक चिंताजनक घटना में, प्रमुख सांसद जिया-उर-रहमान बर्क सहित दर्जनों मुसलमानों को अचानक कई मामलों में नामजद किया। यह कार्रवाई पिछले वर्ष नवंबर में हुई दुखद पुलिस गोलीबारी के बाद की गई है, जिसमें शाही जामा मस्जिद के न्यायालय द्वारा आदेशित सर्वेक्षण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान निर्दोष मुस्लिम युवकों की जान चली गई थी। अब, एक स्पष्ट राजनीतिक रूप से प्रेरित अभियान में, बिजली कटौती, भारी जुर्माना और एफआईआर का इस्तेमाल शोक संतप्त परिवारों और हाशिए पर पड़े व्यक्तियों को डराने के लिए किया जा रहा है। 1978 के सांप्रदायिक दंगों के मामलों को फिर से शुरू किए जाने से तनाव और बढ़ गया है, तथा विभाजन और भय का खतरनाक माहौल पैदा हो गया है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद उत्तर प्रदेश सरकार से इन लक्षित अभियानों को तुरंत रोकने, कानून के शासन को बनाए रखने और सभी प्रभावितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने का आह्वान करता है। हम न्यायपालिका से संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने का आग्रह करते हैं और नागरिक समाज और मीडिया से शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए इन अन्यायों के खिलाफ बोलने की अपील करते हैं।”