अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी नवीनतम विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट में, 2022 के लिए वैश्विक विकास की उम्मीदों को 3.2 फीसदी पर बरकरार रखा है, और अगले साल के अनुमान को 2.9 फीसदी से घटाकर 2.7 फीसदी कर दिया है। आईएमएफ ने आगाह किया है कि साल 2023 में दुनिया मंदी झेलने को मजबूर हो सकती है, क्योंकि सख्त मौद्रिक नीतियों के बीच ऊर्जा और खाद्य संकट को रोकने के लिए ‘सबसे बुरा’ अभी आना बाकी है।आईएमएफ ने जहाँ भारत के 2023-24 के विकास अनुमान को 6.1 फीसदी पर बरकरार रखा, वहीं उसने इस साल के पूर्वानुमान को जुलाई में 7.4 फीसदी से घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया। विश्व बैंक के 6.5 फीसदी के आकलन के बाद यह दूसरा महत्वपूर्ण अनुमान है, जो भारत की जीडीपी वृद्धि को 7 फीसदी से नीचे दिखा रहा है, जिसकी भारतीय रिज़र्व बैंक और नॉर्थ ब्लॉक के अधिकारी इस वर्ष उम्मीद कर रहे हैं। इस कमी का जिम्मेदार दूसरी तिमाही में ‘उम्मीद से कमजोर’ बाहरी मांग को ठहराया गया है। कर संग्रह, औद्योगिक उत्पादन और निर्यात में धीमी वृद्धि इस पूर्वानुमान का समर्थन करती है। आगे की राह तो रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन में मंदी – जिसे आईएमएफ ने जीवन यापन संकट की लागत करार दिया है – के कारण और कष्टदायक होती दिखती है। आईएमएफ का कहना है कि उच्च अनिश्चितता और बढ़ती कमजोरियों के बीच मौद्रिक, राजकोषीय या वित्तीय नीति में गड़बड़ी का जोखिम तेजी से बढ़ा है। भारत की कम प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए, कीमतों में निरंतर वृद्धि ने अधिकांश परिवारों की खर्च करने की क्षमता को प्रभावित किया है, और अगली पीढ़ी की शिक्षा में निवेश करने की उनकी क्षमता को भी यह कम कर सकता है। वित्त मंत्री का यह दावा कि भारत मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने में कामयाब रहा है और यह प्राथमिकता की चिंता नहीं है, उतना सही नहीं दिखता क्योंकि जुलाई की 6.71 फीदी की मामूली राहत के बाद अगस्त और सितंबर में पहली तिमाही में महंगाई 7 फीसदी से ऊपर का उछाल देखा गया। सरकार ने 2023-24 के बजट पर काम शुरू कर दिया है, लेकिन इस साल की दूसरी छमाही में अभी उसे चतुराई दिखाने की ज़रुरत है।