भारतीय फुटबाल में प्राण फूंकने का प्रयास

भारतीय फुटबाल महासंघ (एआइएफएफ) की नवगठित समिति ने संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैंपियनशिप के अंतिम पड़ाव के दौर को सऊदी अरब में आयोजित करने का फैसला किया है।

इस बारे में सऊदी अरब फुटबाल फेडरेशन और एआइएफएफ के बीच बाकायदा मेमोरेंडम साइन हुआ है जिसे लेकर देश की फुटबाल हलकों में उत्सुकता का माहौल है। भारतीय फुटबाल पर सरसरी नजर डालें तो संतोष ट्राफी सबसे ज्यादा उपेक्षित और अर्थहीन आयोजन बन कर रह गया है। भले ही इस आयोजन को राष्ट्रीय फुटबाल चैंपियनशिप का नाम दिया गया है लेकिन आइलीग और आइएसएल जैसे आयोजनों के प्रचलन में आने के बाद से संतोष ट्राफी बस नाम भर के लिए खेली जा रही है।

वह जमाना लद गया है जब इस आयोजन में भाग लेना देश के हर उभरते फुटबालर का पहला सपना होता था और संतोष ट्राफी के प्रदर्शन के आधार पर ही राष्ट्रीय फुटबाल टीम का गठन किया जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में एआइएफएफ की गलत नीतियों के कारण यह आयोजन भारतीय फुटबाल का बड़ा असंतोष बन कर रह गया था, अब इसे नए आकर्षण के साथ फिर से मैदान में उतारा जा रहा है, जिसे शानदार शुरुआत कहा जा सकता है।

फिलहाल भारतीय खेलों के इस प्रकार के कुछ आयोजन सिर्फ क्रिकेट में देखने सुनने को मिलते हैं जबकि भारत पाक क्रिकेट सीरीज या आइपीएल किसी अन्य देश में खेले गए। फुटबाल में अपनी किस्म का यह पहला प्रयोग है। अच्छी बात यह है कि पहली बार एआइएफएफ ने संतोष ट्राफी को लेकर चिंता जताई है और अपनी किस्म का अनोखा प्रयोग करने का फैसला किया है। वरना लगातार बोझिल हो रहे आइलीग और आइएसएल जैसे आयोजनों ने संतोष ट्राफी को एकदम महत्त्वहीन बना दिया था।

महासंघ संतोष ट्राफी के फाइनल राउंड का आयोजन सऊदी अरब के बड़े शहरों में कराने के पीछे यह तर्क दे रही है कि वहां भारतीय बहुतायत में हैं और खेलने एवं देखने वालों को बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा।खिलाड़ियों को एक अलग तरह का अंतरराष्ट्रीय अनुभव मिलेगा जिसके लिए वे जी जान से तैयारी करेंगे। भाग लेने वाली सभी टीमों का पहला लक्ष्य अंतिम 12 में स्थान बनाने का होगा। ज़ाहिर है खेल का स्तर सुधरेगा, जोकि भारतीय फुटबाल की सबसे बड़ी जरुरत है।

1941 में शुरू हुई संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैंपियनशिप 80 साल पुरानी हो गई है। इस बीच पश्चिप बंगाल ने सर्वाधिक 32 बार खिताब जीते। पंजाब,केरल, सर्विसेस, गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि ने भी इस ट्राफी को चूमा। लेकिन जब यह आयोजन बंद होने की कगार पर खड़ा था नई सोच और नई ऊर्जा वाली फेडरेशन ने एक ऐसा प्रयोग करने की सोची है, जिसकी कामयाबी भारतीय फुटबाल में बहुत कुछ बदल सकती है। बेशक, अध्यक्ष कल्याण चौबे और महासचिव शाजी प्रभाकरन और उनकी टीम साधुवाद की पात्र है।

पूर्व खिलाडी और फुटबाल विशेषज्ञों की राय में फेडरेशन को चाहिए कि अपने राष्ट्रीय आयोजन को बढ़ावा देने के लिए अधिकाधिक खिलाडियों को संतोष ट्राफी में खेलने के लिए प्रोत्साहित करे। सदस्य इकाइयों को श्रेष्ठ खिलाडियों के चयन के लिए हिदायत दी जाए और किसी गड़बड़ को देखते हुए कड़ी सजा का भी प्रावधान हो यदि ऐसा हुआ तो संतोष ट्राफी देश की फुटबाल का असंतोष दूर करने में कारगर साबित होगी। अक्सर देखा गया है कि संतोष ट्राफी में भाग लेने वाली टीमों की चयन प्रक्रिया पर माफिया हावी रहते हैं। बंगाल,केरल, कर्नाटक आदि राज्यों को छोड़ अधिकांश में श्रेष्ठ का चयन नहीं हो पाता। इस धोखाधड़ी को रोकने के लिए ठोस कदम जरूरी हैं।

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