चीन से आ रही कोरोनावायरस मामलों में तेजी ख़बरों ने वैश्विक स्तर पर चिंता पैदा कर दी है। मामले की गंभीरता को समझते हुए भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को एक निर्देश जारी किया कि वे जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए सैंपल भेजें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे लेकर उच्च स्तरीय बैठक की। स्वास्थ्य मंत्री ने अलग से अधिकारियों से समीक्षा बैठक बुलाई। वैसे अभी तक के भारत के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं है। देश भर में सक्रिय मामलों की संख्या 4000 से कम है। नवीनतम उपलब्ध साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, केवल एक जिले में परीक्षण पॉजिटिविटी रेट 10 फीसदी से ज्यादा है और केवल चार जिलों में 5 और 10 फीसदी के बीच है। भारत का कोविड-19 टीकाकरण कवरेज 219.33 करोड़ से अधिक हो गया है, और अस्पतालों से संकट के कोई संकेत नहीं मिले हैं। आम राय यह है कि कुछ सबसे अधिक प्रतिबंधात्मक नियंत्रण उपायों के लगभग तीन वर्षों के बाद प्रतिबंधों को हटाने से अब उन लोगों का एक बड़ा समूह सामने आया है जिनमें ‘प्राकृतिक प्रतिरक्षा’ की कमी है। चीन से आ रही ख़बरों के बाद भारत सरकार ने हवाई अड्डों पर पांच देशों के यात्रियों का आरटी पीसीआर टेस्ट ज़रूरी कर दिया है। पिछले कोविड चक्र के दौरान भी बाहर से आने वाले यात्रियों के कारण देश में संक्रमण बढ़ा था। यह देखते हुए कि यात्रा के मामले में दुनिया का अधिकांश हिस्सा सामान्य स्थिति में आ गया है, चिंता की बात यह है कि संक्रमण का उछाल विश्व स्तर पर कई और संक्रमणों के साथ, यहां तक कि भारत में भी अनिवार्य रूप से प्रतिध्वनित होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। सबसे बड़ा सबक जो चीनी अनुभव से हासिल किया जा सकता है वह यह है कि लंबे लॉकडाउन वायरस को खत्म नहीं कर सकते और महामारी के खिलाफ एकमात्र उचित बचाव टीकों के माध्यम से ही संभव है। चीन काफी हद तक घरेलू टीकों जैसे कोरोनावैक और सिनोफार्म टीकों पर निर्भर रहा है जो निष्क्रिय वायरस तकनीक पर निर्भर हैं। उसकी 90 फीसदी आबादी को एक खुराक और बाकी को दूसरी खुराक देने के बावजूद, चीन में मामलों की बढ़ती संख्या बताती है यथास्थिति को स्वीकार करना होगा। भारत के लिए बड़ा सबक न केवल हाल के सालों के कोरोनावायरस वेरिएंट पर नजर रखना है, बल्कि यह देखना भी जरूरी है कि क्या लगाए गए टीके अपना असर बनाये रखेंगे।