मशहूर उद्योगपति रतन टाटा 28 दिसंबर यानी आज 85 साल के हो गए। रतन टाटा की कहानी दिलचस्प है, उनकी जिंदगी में तमाम उतार-चढ़ाव आए। टाटा जब महज 10 साल के थे तब उनके माता-पिता अलग हो गए और उनकी दादी ने उनका पालन पोषण किया। रतन टाटा साल 1991 में पहली बार टाटा संस के चेयरमैन बने। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती टाटा ग्रुप की कई कंपनियों की नेतृत्व बदलने की थी। इन कंपनियों की अगुवाई ऐसे लोग कर रहे थे, जो दशकों से कंपनी में जमे और एक तरीके से कंपनी पर आधिपत्य जमा लिया था।
रतन टाटा से पहले, जेआरडी टाटा साल 1938 से 1991 तक टाटा संस के चेयरमैन रहे। जेआरडी टाटा ने रूसी मोदी, दरबारी सेठ और अजीत केरकर को ग्रुप की अलग-अलग कंपनियों की कमान दे दी थी। जेआरडी टाटा कभी उनके कामकाज में दखल नहीं देते थे, लेकिन जब रतन टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने तो उन्होंने लीडरशिप में बदलाव का फैसला लिया।
उन दिनों रूसी मोदी टाटा स्टील के सीएमडी हुआ करते थे। उन्होंने साल 1939 में टाटा स्टील ज्वाइन किया था और 1984 आते-आते इसके चेयरमैन बन गए थे। उन्होंने एक तरीके से कंपनी पर आधिपत्य जमा लिया था। रतन टाटा ने रूसी मोदी को हटाने के लिए कंपनी की रिटायरमेंट पॉलिस को हथियार बनाया, जिसके मुताबिक ग्रुप की किसी भी कंपनी के बोर्ड डायरेक्टर को 75 साल की उम्र के बाद हटना ही पड़ेगा। मजबूरन रूसी मोदी को जाना पड़ा।
रतन टाटा के अगले निशाने पर थे दरबारी सेठ, जो टाटा केमिकल्स और टाटा टी के सर्वे-सर्वा थे। उन्हें भी मजबूरन कंपनी छोड़नी पड़ी, लेकिन उन्होंने जाते-जाते अपने बेटे मनु सेठ को टाटा केमिकल्स का एमडी बनवा दिया, हालांकि बाद में मनु को भी इस्तीफा देना पड़ा था।
अगला नंबर था अजीत केरकर का जो उन दिनों इंडियन होटल्स को लीड कर रहे थे। उन्होंने अपने पद से हटने में तमाम आनाकानी की और रिटायरमेंट पॉलिसी के मुताबिक उनके पास अभी कुछ साल बच भी रहे थे। हालांकि रतन टाटा नहीं चाहते थे कि वह कंपनी में रहें। इसके बाद केरकर के खिलाफ FERA नियमों में गड़बड़ी को आधार बनाया गया। मजबूरन केरकर को भी कंपनी छोड़नी पड़ी। बता दें कि साल 1992 में रतन टाटा ने फिर से कंपनी की रिटायरमेंट पॉलिसी को रिवाइव किया। साल 2002 इसमें में कुछ बदलाव भी किया गया।
रतन टाटा ने हार्वर्ड से पढ़ाई की है। साल 2010 में उन्होंने हार्वर्ड को 50 मिलियन डॉलर की रकम दान की थी। इससे वहां एक एग्जीक्यूटिव सेंटर शुरू किया गया था और इसका नाम टाटा हॉल रखा गया है। रतन टाटा को बिना जेब वाली शर्ट पहनने का शौक है और न्यूयॉर्क के ‘ब्रुक्स ब्रदर्स’ से इसकी खरीदारी करते हैं। टाटा को माउथ ऑर्गन बजाने का भी शौक है। साथ ही अक्सर पुराने गाने गुनगुनाते हैं।