झारखंड में गरीबों का अनाज मुर्दे और चार चक्का वाहन और चार मंजिला मकान के मालिक भी राशन कार्ड उपभोग कर रहे हैं, कालाबाजारी

प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 3 महीने का मुक्त राशन गरीबों को नहीं मिला, राशन के लिए जनता उठाती रही है आवाज सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगा

मनप्रीत सिंह

झारखंड: प्रदेश में पीडीएस के माध्यम से मिलने वाले गरीबों के अनाज का उपभोग अब मुर्दा और बहुमंजिला इमारत के मालिक, बड़े वाहन के संचालक कर रहे हैं। बच्चे खूचे कसर को डीलर भी पूरा कर देते हैं, जो गरीबों को मिलने वाले अनाज कालाबाजारी कर रहे हैं ।वहीं कुछ व्यापारी गरीबों को मिलने वाले अनाज को अपने ब्रांडेड पैक्ट में पैकिंग कर के महंगे दाम पर बेच रहे हैं। यह सब जांच का विषय है ।अगर ठीक से जांच हो जाए तो करोड़ों के रुपए के घोटाले का खुलासा होना और अनेक सफेदपोश का चेहरा बेनकाब होना तय माना जा रहा है।

प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 20 22 में 3 महीना के लिए मुफ्त राशन देने की घोषणा की गई थी । वह राशन आज तक अनेक झारखंड वासियों को नहीं मिला। इसके लिए पीड़ित गरीब जनता धरना प्रदर्शन करती रही है । अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से राशन के लिए आवाज उठाती रही है। वहीं राज्य सरकार के कान पर जूं तक नहीं रहेगा है।अब प्रश्न उठता है कि गरीबों को दिया जाने वाले 3 महीना का राशन कौन डकार गया।जो जांच का विषय है।
 पुनः यह मामला स्कूल पकड़ रहा है कि सरायकेला प्रखंड के जीवनपुर ग्राम निवासी मोहम्मद अरमान ने जिला खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी को पत्र लिखकर इस गड़बड़ घोटाले की जांच कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया है। प्रेषित पत्रों में बताया गया है कि जीवनपुर निवासी कार्ड धारी रोशन आरा के परिवार में कुल 8 सदस्य हैं, जिनमें से परिवार के एक सदस्य अब्दुल कादिर के पास 2- 2 ट्रैक्टर और स्कॉर्पियो है, साथ ही साथ वे दो मंजिला पक्के मकान में रहते हैं और निजी कंपनी में ठेकेदारी का कार्य करते हैं।
ठीक इसी प्रकार जीवन पुर ग्राम के ही एक कार्डधारी अशरफ अली की काफी दिनों पहले मृत्यु हो चुकी है, फिर भी उनके परिवार द्वारा स्वर्गीय अशरफ अली के नाम पर राशन का उठाव हो रहा है। जबकि परिवार के सदस्यों के पास दो मंजिले मकान से लेकर निजी कंपनी में ठेकेदारी का भी कार्य है। उक्त परिवार की मासिक कमाई दो से तीन लाख बताई जाती है। एक अन्य कार्डधारी यास्मिन निगर के पास भी दो मंजिल मकान से लेकर चार चक्का वाहन तक है, लेकिन उनके द्वारा भी बरसों से गरीबों को दिए जाने वाले खाद्यान्न का निरंतर उठाव हो रहा है।


अन्य कार्ड धारी असगर अली के परिवार में भी कार, दुकान से लेकर ठेकेदारी के जरिए मोटी आय हर महीने होती है। इसके बावजूद सभी कार्ड धारियों द्वारा लंबे अरसे से खाद्यान्न का उठाव किया जा रहा है. अब सवाल यह उठता है कि क्या मुर्दे भी सरकारी खाद्यान्न का लाभ ले रहे हैं ? क्या बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले और बड़ी-बड़ी गाड़ियों के स्वामी गरीबी रेखा से नीचे गुजर- बसर करने वालों की सूची में शामिल हैं ? अगर यह सब कुछ नियम कायदे और प्रावधान के विपरीत है, तो ऐसे लोग कैसे बरसों से गलत और मनमाने ढंग से सरकारी खाद्यान्न की लूट में संलग्न है ? क्या विभागीय अधिकारी भी इसके लिए उतने ही दोषी नहीं है ? अब प्रश्न उठता है कि इस तरह का मामला सरायकेला का के अलावा राज्य के सभी जिलों में घोटाला से संबंधित रखता है। सरकार की नजर में सारी बातें हैं। इसके बाद भी झारखंड सरकार क्यों मौन है ।जानकार बताते हैं गरीबों के अनाज का कालाबाजारी जमकर हो रहा है। एक रुपया किलो में मिलने वाले अनाज को व्यापारी अपने ब्रांड के बोरा में पैक कर 32 रुपया किलो बेच रहे हैं। जो चौंकाने वाला है । व्यापारी डीलर से गरीब के आना 20 से 26 रुपये किलो के बीच में खरीदते हैं। बदले में डीलर ऊपर से नीचे तक संबंधित अधिकारियों को नजराना प्रस्तुत करता है। जिसके कारण सभी मुंह और आंख पर पट्टी बांध रखे हैं। अनेक लोग गरीब के अनाज के कालाबाजारी के विरुद्ध आवाज उठाते हैं। लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। यह सारा खेल अवैध कमाई का है। इस मामले में प्रधानमंत्री के द्वारा घोषित गरीब कल्याण हेतु मुफ्त राशन योजना को राज्य सरकार द्वारा दबाने का भी प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। जिससे केंद्र सरकार बदनाम हो। सारे मामले की जांच होनी आवश्यक मानी जा रही है।

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