खत्म हो सकता है बेरोजगारी का दर्द…

प्रोफेसर आर के सिंह


सबको रोजगार देकर, मानवीय-आर्थिक क्षमताओं का पूर्ण उपयोग और प्रदूषणमुक्त विकसित भारत का निर्माण किया जा सकता है. कहना है डीटीयू डेल्ही टेक्निकल यूनिवर्सिटी में सीनियर प्रफेसर आर के सिंह का. वह बेरोजगारी मुक्त समाज के लिए मुहिम चलाते रहे हैं. उनका कहना है कि मौजूदा ढांचे में भी यह संभव है. सबको रोजगार देकर, मानवीय-आर्थिक क्षमताओं का पूर्ण उपयोग और प्रदूषणमुक्त विकसित भारत का निर्माण किया जा सकता है.

मनमोहन सिंह नौला से बातचीत में आर के सिंह अपनी इसी बात को एक्सप्लेन करते हैं.आज के दौर में जबकि बेरोजगारी हिंदुस्तान ही नहीं विश्व में सबसे बड़ी समस्या के तौर पर तेजी से उभर कर आ रही है, हिंदुस्तान में सिंह की बातों को अनदेखा नहीं किया जा सकता.

देश की वर्तमान आर्थिक और वित्त व्यवस्थाओं में क्या दिक्कतें हैं जिनके कारण बेरोजगारी और गरीबी है? 

आधुनिक युग में जैसे मशीनों को चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है, वैसे ही अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए मुद्रा की जरूरत होती है। यह मुद्रा उत्पादक के पास उत्पादन करने के लिए जरूरी है और इन उत्पादन और सेवाओं को मुनाफे पर बेचने के लिए उपभोक्ता के पास भी होना जरूरी है, तभी यह चक्र चलता है | मुद्रा का स्रोत केंद्र सरकार की कानूनी शक्ति में होता है।

तकनीकी के विकास के कारण अर्थव्यवस्था में उत्पादकता बहुत बढ़ जाती है लेकिन बहुत कम लोगों द्वारा बहुत सामान पैदा होने के कारण बहुत सारे लोग बेरोजगार हो जाते हैं। बेरोजगारी के कारण उनके पास सामान और सेवाओं को खरीदने का धन नहीं होता  हालांकि वे सामान अब प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं। इसके चलते दूसरी समस्या भी पैदा हो जाती है जिसमें किसानों और उद्योगों आदि को अपना सामान और सेवाएं मुनाफे पर बेचने में बहुत दिक्कत होने लगती है क्योंकि उनको खरीदने वाले कम हो जाते हैं जिसके कारण किसान और उद्योग अपनी उत्पादन क्षमता का पूरी तरह उपयोग नहीं कर पाते हैं और नई उत्पादन क्षमताओं का विकास नहीं करते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि तकनीकी के चलते एक तरफ बेरोजगारी फैल जाती है और दूसरी तरफ 

देश की उत्पादक क्षमताओं का पूर्ण उपयोग और सामर्थ्य अनुसार विकास नहीं हो पाता है। 

संप्रभु राष्ट्र अपनी मुद्रा जारीकर्ता/ मुद्रा बनाने का कानूनी अधिकार रखते हैं और जब देश में अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी की स्थिति हो तो उन्हें अपनी मुद्रा बनाने की कानूनी शक्ति का पूर्ण उपयोग कर सबको रोजगार देना चाहिए जिससे राष्ट्र निर्माण होगा और अर्थव्यवस्था उन्नत होगी।

मुद्रा जारीकर्ता और मुद्रा उपयोगकर्ता में क्या अंतर है? देश में मुद्रा का विस्तार या संकुचन (घटना और बढ़ना) कैसे होता है और यह हमारी अर्थव्यवस्था और राष्ट्र निर्माण को कैसे प्रभावित करता है?

सत्ता, मुद्रा, अर्थव्यवस्था और राष्ट्र निर्माण में गहरा संबंध है। सत्ता द्वारा मुद्रा का निर्माण किया जाता है और अर्थव्यवस्था में लगाया जाता है और देश के नागरिक मुद्रा के उपयोगकर्ता होते हैं और उनका जीवन और भविष्य इस मुद्रा की आय पर निर्भर करता है। इस तरह नागरिकों, मुद्रा, अर्थव्यवस्था और सत्ता द्वारा राष्ट्र निर्माण होता है। इसका मतलब यह है कि उत्पादकों और अन्य नागरिकों को मुद्रा के लिए कार्य करना होता है जिससे वह अपना जीवन और भविष्य सुखमय और सुरक्षित बना सके। केंद्र सरकार जो मुद्रा जारीकर्ता होता है या कहें मुद्रा का निर्माण करता है उसका उद्देश्य देश में मानव और प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर राष्ट्र निर्माण करना होता है। उदाहरण के तौर पर जब अपने देश की केंद्र सरकार ₹100 खर्च करती है और ₹90 टैक्स के रूप में वापस लेती है तो हमारे देश में आर्थिक गतिविधि बढ़ती है और ₹10 देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा उपयोगकर्ताओं के पास रह जाते हैं और अगर केंद्र सरकार अपनी नीति और आर्थिक स्थिति को देखते हुए ₹100 अर्थव्यवस्था में खर्च करती है और ₹110 टैक्स के रूप में लेती है तो ₹10 मुद्रा उपयोगकर्ताओं से या कहें अपने देश की अर्थव्यवस्था से वापस चले जाते हैं और इन्हें जोड़ घटा कर  हम पता कर सकते हैं कि हमारे देश की मुद्रा में क्या बदलाव हुए हैं जिससे हम समझ सकते हैं कि स्वतंत्रता के समय हमारे पास कुछ मुद्रा थी और अब अगर मुद्रा अलग है तो वह मुद्रा कैसे आई | अगर देश में बेरोजगारी गरीबी ज्यादा रहेगी तो निवेश नहीं होगा और यहां पर केंद्र सरकार को अपनी वित्त नीति से मुद्रा का निर्माण कर सभी लोगों को रोजगार देने की नीति अपनाना जरूरी हो जाता है .

सब को रोजगार देने के लिए रुपए कहां से आएंगे?

भारत सरकार अपनी कानूनी शक्ति के द्वारा रुपए बनाती है या जारी करती है और यह शक्ति सिर्फ भारत सरकार को है कि वह अपनी वित्त नीति द्वारा इतने सारे रुपए उपलब्ध करा सकती है.

करोड़ों बेरोजगार युवक और युवतियों को कहां या किस तरह का कार्य मिलेगा?

भौतिक, बुनियादी और समाज उपयोगी ढांचा जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, सुरक्षा, सफाई, पर्यावरण सुरक्षा, शोध, डिजिटल डाटा प्रबंधन व प्रशासन, मनोरंजन, खेलकूद, सामुदायिक सेवाओं, चाइल्ड केयर, ओल्ड एज केयर, जल संसाधन, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा आदि को विकसित और उन्नत करने की दिशा में बड़ी संख्या में रोजगार सृजन किया जा सकता है।

बड़ी संख्या में नौकरियां और सरकारी खर्च के कारण भ्रष्टाचार पर कैसे लगाम लगाई जा सकती है?

अपने देश में रुपए को डिजिटल कर दिया जाए तो वित्तीय लेन देन का आसानी से पता किया जा सकता है जिससे वित्तीय अनियमितताओं को पहचानने और नियंत्रण करने में मदद मिल सकती है।

डिजिटल तकनीकी का उपयोग कर डॉक्यूमेंटेशन पारदर्शिता, जवाबदेही और लोगों की भागीदारी बनायी जा सकती है और पेशेवर ढंग से कार्यों और प्रक्रियाओं की गुणवत्ता और ईमानदारी बनाए रखी जा सकती है।

सबको रोजगार की गारंटी होने से लोगों में आत्मविश्वास और नैतिकता का विकास होगा और देश में भ्रष्टाचार की संस्कृति खत्म होगी।

इतनी बड़ी संख्या में नौकरी प्रदान करने से क्या अर्थव्यवस्था उन्नत होगी या चरमरा जाएगी ?

तकनीकी के विकास के कारण कृषि और उद्योग में सामान और सेवाओं को बनाने की अपार क्षमता विकसित हो गई है। लेकिन बेरोजगारी और गरीबी के कारण इन उत्पादों और सेवाओं को खरीदने वालों के पास पैसे ना होने के कारण हम अपने देश की उत्पादक क्षमताओं का पूर्ण उपयोग और विकास नहीं कर पा रहे हैं। इतने सारे रोजगार देने के कारण इनके पास सामान और सेवाएं खरीदने की क्षमता आएगी जिससे अपने देश की कृषि और उद्योगों की क्षमताओं का उपयोग हो पाएगा और उनका डिमांड के हिसाब से विकास भी हो पाएगा। इस तरह हम पाते हैं कि सब को रोजगार देने की नीति से अपने देश की अर्थव्यवस्था में बहुत तेजी से विकास होगा।

क्या सब को रोजगार देने की नीति से महंगाई बहुत बढ़ जाएगी?

अभी अपने देश की बहुत सारी उत्पादक क्षमता का आंशिक उपयोग ही हो पा रहा है क्योंकि गरीबी बेरोजगारी के कारण लोगों के पास क्रयशक्ति नहीं है। लेकिन जैसे ही सब को रोजगार देने से उनके पास क्रयशक्ति आएगी तो अब किसान, दूध उत्पादक, छोटे- मझोले उद्योग और अन्य उद्योग  अब अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर ज्यादा सब्जी दूध और जरूरी उत्पादक सामानों की पैदावार बढ़ाएंगे जिसके कारण इन सामान और सेवाओं की उपलब्धता बढ़ेगी और इन चीजों की कीमतों में भी स्थिरता आएगी।

 कुछ कीमतों में वृद्धि हो सकती है इसका असर कम करने के लिए जरूरी सामान और सेवाएं पैदा करने वालों को ब्याज मुक्त धन उपलब्ध कराकर लागत में कटौती और क्षमता का विस्तार किया जा सकता है।

  कुछ उत्पादक इन परिस्थितियों का दुरुपयोग कर मुनाफाखोरी कर सकते हैं लेकिन बेहतर प्रशासन और कर प्रणाली बनाकर इस तरह की लालची और मुनाफाखोरी सोच पर लगाम लगाई जा सकती है।

पूर्ण रोजगार द्वारा उन्नत राष्ट्र निर्माण की क्या सोच है?

करोड़ों कार्यों को पैदा कर देश की मानवीय,सोशल पूंजी (गरिमा, इज्जत और विश्वास), आधारभूत संरचना का विस्तार, पर्यावरण की उचित देखभाल  तथा अनुसंधान और विकास द्वारा देश की अल्पावधि और दीर्घकालिक उत्पादकता तथा क्षमता को बहुत बढ़ा सकते हैं। 

देश को खाने में आत्मनिर्भर और ओवरहेड केबल आदि द्वारा बसों और ट्रकों को बिजली से चला कर तेल पर निर्भरता घटा सकते हैं जिससे हम ऊर्जा में भी आत्मनिर्भर हो जाएंगे।

इस काम के लिए देश की प्रशासनिक क्षमताओं का विकास निहायत जरूरी है। इसका एक पहलू है डिजिटलाइजेशन, जिसका उपयोग कर हम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं; ऐसी भागीदारी जन सशक्तिकरण का रास्ता खोल सकती है और इस तरह उनकी गरिमा को सुनिश्चित किया जा सकता है. ऐसी भागीदारी द्वारा प्रशासनिक प्रक्रियाओं को लगातार उन्नत और मानवीय बनाया जा सकता है ।

उन्नत टेक्नोलॉजी में निवेश बढ़ाकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकते हैं ।

राष्ट्रीय मुद्रा का उपयोग कर पूर्ण रोजगार और राष्ट्र निर्माण के क्या अतीत में कोई उदाहरण हैं ?

 अमेरिका में 1933 में न्यू डील  नाम की नीति बनाई गयी थी जिसमें व्यापक पैमाने पर रोजगार निर्माण किए गए थे जिसके द्वारा राष्ट्र निर्माण के कार्यों में उन्नति कर देश को उन्नत बनाने के लिए आधार रखा गया था।

  जर्मनी में भी करीब 1933 में सभी को रोजगार की नीति बनाई गई। और बेरोजगारी को गैरकानूनी कर दिया गया। इतने सारे रोजगार निर्माण करने से जर्मनी में कृषि, उद्योग और अनुसंधान और विकास तथा अन्य तरह के इंफ्रास्ट्रक्चर का बहुत विकास हुआ।

  90 के दशक में चीन ने भी इस तरह की वित्तीय और प्रशासनिक नीतियां अपनाकर अपने यहां बड़े पैमाने पर रोजगार निर्माण किया और यह नीति चीन को उन्नत राष्ट्र बनाने में मददगार साबित हुई।

  पिछले 20 साल में हमारे देश में भी मशीनी युग के साथ-साथ डिजिटल और सूचना प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण उन्नति हुई है और हम सूचना और डिजिटल तकनीकी का उपयोग कर मानव और अन्य भौतिक  संसाधनों का बेहतर नियोजन  और समन्वयन  कर इस मशीनी युग का  बेहतर उपयोग कर अपने देश से बेरोजगारी और गरीबी के दर्द को बहुत जल्द खत्म कर प्रदूषण मुक्त, नैतिक, उन्नत, और खुशहाल भारत का निर्माण कर सकते हैं।

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