नवगीत – लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

हमने तो बस्ती बोई थी, जंगल ये कैसे उग आया..

इस बस्ती में बड़े भयानक. 

 कुछ नरपशु खूंखार मिलेंगे..

बस्ती भले मनुष्यों की है 

पर मनुष्य दो चार मिलेंगे..

धनपशुओं की,यंत्रमानवों की,

 है अपनी अपनी ही माया..।

हमने तो …

असली जंगल तो कम से कम मूल्यवान पेड़ों का घर है

हर पहलू से कंकरीट का,

 ये जंगल उससे बदतर है..

यहां हवा में घुले ज़हर ने, 

बीमारी का जाल बिछाया..।

हमने तो … 

बड़ी अजब तहज़ीब बना ली, 

बड़े अजब दस्तूर हो गये..

रिश्ते नाते प्यार मोहब्बत 

सबसे कोसों दूर हो गये..

आत्मलिप्त पशुवत जीवन का अजब चलन सब ने अपनाया..।

हमने तो … 

सोचा तो ये था बस्ती में, 

उजियारा नग़में गाएगा

नयी सभ्यता का इक सूरज

 ऐसी किरणें बरसाएगा..!

ये कैसी सभ्यता कि जिसने .. 

हमको और असभ्य बनाया..।

हमने तो बस्ती बोई थी जंगल में कैसे उग आया

Related Posts

About The Author