भारतीय आदिवासियों के आन्दोलन में विदेशीयों के समर्थन से खूफिया एजेंसी के कान खडे
झारखंड :अलग सरना कोड को लेकर प्रदेशभर के आदिवासियों ने प्रदेश की राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में हुंकार भरी और आगामी लोकसभा चुनाव के पूर्व जनगणना फॉर्म में प्रकृति पूजा से जुड़े सरना धर्म को अलग स्थान ना दिए जाने पर आदिवासी समाज के द्वारा चुनाव बहिष्कार की धमकी दे डाली। इस दौरान आदिवासियों और मूल वासियों ने एक विशाल रैली भी निकाली।अब तक अलग सरना धर्म कोल्ड की मांग अपने अधिकार के लिए किया जा रहा एक विशेष आंदोलन के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन इसी आंदोलन में जब पड़ोसी राज्य नेपाल के 100 से अधिक आदिवासी प्रतिनिधि भारत में आकर यहां के आदिवासियों का समर्थन करें और आन्दोलन से वोट बहिष्कार की बात उठे तो निसंदेह चौंकाने वाली बात है। इसके पीछे विदेशी षड्यंत्र की बू आने लगी है ।इसलिए खुफिया विभाग इस पूरे आंदोलन में स्थानीय आदिवासी और मूलवासी के साथ विदेशियों के गतिविधि पर नजर गड़ाए हुए हैं। वहीं जानकार भी संदेह व्यक्त कर रहे हैं कि यह आंदोलन विदेशियों के इशारे पर तो नहीं हो रहा है? यह जांच का विषय है।
राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में विशाल रैली को संबोधित करते हुए सरना धर्म के नेता बंधन तिग्गा ने कहा कि जनगणना में एक अलग ‘सरना’ कोड आदिवासियों के लिए अलग पहचान की कुंजी है। क्योंकि इसके बिना उन्हें हिंदू या मुस्लिम या ईसाई के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
तिग्गा ने कहा कि ‘सरना’ के अनूयायी प्रकृति पूजक हैं और दशकों से अलग धार्मिक पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। राष्ट्रीय आदिवासी समाज सरना धर्म रक्षा अभियान (आरएएसडीआरए) के बैनर तले, झारखंड के 17 जिलों के अनेक आदिवासी निकायों के सदस्यों के साथ ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और असम के भी अनेक आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने ‘रैली’ में भाग लिया।तिग्गा ने कहा कि आदिवासी संगठनों ने कार्यक्रम के लिए झारखंड को चुना क्योंकि यह राज्य देश में ‘आदिवासी आंदोलन का केंद्र’ है। उन्होंने दावा किया, ”इससे पहले हमने दिल्ली में रैली की थी लेकिन केंद्र ने हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया।” आयोजकों में से एक ने दावा किया कि राष्ट्रीय आदिवासी समाज सरना धर्म रक्षा अभियान की मांग को अपना समर्थन देने के लिए पड़ोसी देश नेपाल के 100 से अधिक आदिवासी लोगों ने भी यहां रैली में भाग लिया।
राजी पहाड़ा सरना प्रार्थी सभा (नेपाल) के केंद्रीय अध्यक्ष राम किशुन उरांव ने दावा किया कि वे ‘भारत में अपने आदिवासी भाइयों की मांग का समर्थन करने के लिए यहां आए हैं। उन्होंने कहा, ‘हम भारत सरकार से आदिवासियों की लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करने का आग्रह करते हैं।’ गौरतलब है कि झारखंड विधानसभा ने 11 नवंबर, 2020 को आदिवासियों के लिए एक अलग ‘सरना’ कोड के प्रावधान के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था।
तिग्गा ने कहा, ”17 फरवरी, 2023 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में इसी तरह का एक प्रस्ताव पारित किया गया था और केंद्र की मंजूरी के लिए भेजा गया था। ओडिशा और छत्तीसगढ़ भी जल्द ही इसी तरह के प्रस्ताव केंद्र को भेजने की तैयारी कर रहे हैं।” उन्होंने केन्द्र सरकार से मांग की मूल आदिवासियों की इस मांग को शीघ्रातिशीघ्र पूरा कर उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाए।
दूसरी ओर आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि सरना धर्म कोड का फैसला राजनीतिक है विधायक चमरा लिंडा के नेतृत्व में आदिवासी अधिकार महारैली (16 फरवरी 2023), झारखंड बचाओ महारैली( 5 मार्च 2023) और बंधन तिग्गा के नेतृत्व वाली सरना धर्म कोड महारैली (12 मार्च 2023) कई मामलों में सफल रहा है। आदिवासी समाज को अपने अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी को बचाने की नियत से की गई सभी रैलियां निश्चित आदिवासी समाज को उर्जा प्रदान किया है। इसके केंद्र में प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की मांग, मरंग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को जैनों की कैद से मुक्त करना, कुरमी को एसटी नहीं बनने देना, आदिवासी हितों में प्रदत संविधान- कानून को लागू करना आदि प्रमुख मुद्दे थे। यह सभी मुद्दे अहम हैं। इन अहम आदिवासी मुद्दों के लिए भीड़ और जन जागरण ठीक-ठाक रहा। परंतु क्या नेतृत्व के पास सफलता मुलक रणनीति और संदेश की झलक दिखाई दिया? शायद नहीं।
भारतीय जनतंत्र में सभी अहम मुद्दों का हल राजनीति में निहित है। अतः सरना धर्म कोड यदि हर हाल में 2023 में लेना है तो केंद्र की भाजपा सरकार को मजबूर करना ही होगा। जिसके लिए – “सरना कोड दो, आदिवासी वोट लो” जैसे नारे के साथ भाजपा को विश्वास में लेना होगा और संयुक्त तत्वधान में जल्द अनिश्चितकालीन रेल-रोड चक्का जाम जैसे कार्यक्रम भी लेने होंगे। अन्यथा सब कुछ बेकार साबित हो सकता है। भाजपा से दूरी बनाना या उसके खिलाफ यूपीए (झामुमो प्लस कांग्रेस) का साथ लेना अर्थात सरना कोड चाहने वालों के साथ धोखेबाजी ही साबित होना है। सरना कोड के अलावा दूसरे नाम से प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए धर्म कोड मांगना भी धर्म कोड आंदोलन को कमजोर करना है। “सरना कोड नहीं तो वोट नहीं” के पीछे भी भाजपा विरोधी मानसिकता है। वोट के बहिष्कार से कोई लाभ नहीं होगा। चुंकि बाकी तो वोट देंगे ही। यह नकारात्मक रणनीति है, संविधान और लोकतंत्र विरोधी भी है। तमाम आदिवासी वोट को सरना धर्म कोड को हासिल करने में उपयोग करना जरूरी है। किसी पार्टी विशेष के साथ बेवजह चिपकना भी गलत है। फिलहाल यदि 2023 में सरना धर्म कोड लेना है तो एक ही विकल्प है- भाजपा। मगर जो आदिवासी विदेशी भाषा- संस्कृति और धर्म से जुड़े हैं या प्रभावित हैं या राजनीतिक वोट बैंक के लिए मजबूर हैं, वे वास्तव में सरना धर्म कोड के नाम पर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। भाजपा का विरोध कर निजी या पार्टी स्वार्थ में यूपीए के साथ चलना चाहते हैं। ऐसे लोग डिलिस्टिंग के प्रस्ताव का भी विरोध करते हैं।
अतएव समय कम है, सरना कोड चाहने वाले सभी छोटे-बड़े संगठनों के नेतृत्व और जनता को एकजुट होकर भाजपा की केंद्र सरकार को विश्वास में लेना ही होगा और निर्णायक दबाव बनाने हेतु जल्द संयुक्त रूप से अनिश्चितकालीन रेलरोड चक्का जाम का घोषणा करना होगा। आदिवासी जनता तैयार है। नेतृत्व को राजनीति और रणनीति दोनों पर समझदारी और दूरदर्शिता का परिचय देना होगा अन्यथा जनता के साथ धोखा और सब कुछ बेकार साबित हो सकता है। सेंगेल को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा है। सेंगेल ने सरना धर्म कोड की मान्यता हेतु 11 फरवरी 2023 को 5 प्रदेशों में जोरदार रेलरोड चक्का जाम किया था। अब सेंगेल बाकी सभी संगठनों के साथ मिलकर अनिश्चितकालीन रेलरोड चक्का जाम के लिए तैयार हैं। सरना धर्म कोड आंदोलन की सफलता आदिवासियों के अस्तित्व रक्षा की गारंटी है।
गौरतलब हो कि सलखान मुरमू भाजपा से सांसद चुने गए थे।बाद में वे अलग हटकर अपनी राह पर चल पड़े हैं ।आदिवासी सेंगेल अभियान के बैनर तले आदिवासियों को एकजुट करने में लगे हुए हैं। अब उनका पुनः भाजपा की ओर रुझान है। वे इस आंदोलन के बहाने भाजपा में शामिल होने की संभावना तलाश रहे। जबकि इससे पूर्व भाजपा को जमकर कोसते रहे हैं। जबकि खुफिया विभाग को अलग सरना धर्म कोड आंदोलन हैक होने का अंदेशा लग रहा है । नेपाल से आए समर्थकों के पीछे चीनी षड्यंत्र का बू आने का संदेह है। हालही में नेपाल की धरती से भारत के विरुद्ध अनेक विवाद उत्पन्न किए गए हैं। नेपाल अभी चाइना के हाथ खिलौना बना हुआ है।वह चाइना के इशारे पर भारत के विरुद्ध बहुत सारे परेशानियां खड़ा करते दिखा है।