अन्नदाता के लिए एक दिन का अन्न त्याग हमारा दायित्व है- अमर हबीब

आज 19 मार्च 2023 के दिन किसानपुत्र आंदोलन ने एक दिन आत्महत्या कर अपनी जिंदगी खत्म करने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने और किसानों की आजादी के लिए संकल्प लेने के लिए एक दिन का उपवास करने की अपील की है आम लोगों से इस विषय में किसान पुत्र आंदोलन के अमर हबीब से ‘फाइनेंसियल वर्ल्डने बातचीत की ।

एक दिन का उपवास क्यों? और 19 मार्च ही क्यों चुना गया?

19 मार्च 1986 को यवतमाल जिले के चिलगव्हाण के किसान साहेबराव करपे ने अपने चार बच्चों और पत्नी के साथ आत्महत्या कर ली थी। वे अच्छे किसान थे। संगीत के पारखी थे। वे लगातार 11 साल तक गांव के सरपंच के पद पर रहे थे। बिजली का बिल न भर पाने के कारण उनकी गेंहू की फसल तबाह हो गयी थी। पुरी कोशीष के बावजूद वह फसल बचा न पाये। अंत में वर्धा जिले के पवनार के पास दत्तपुर में जाकर उन्होने सामूहिक आत्महत्या कर ली थी!
आत्महत्या करने से पहले उन्होंने एक पत्र लिखा था। उस में उन्होंने किसानों की दुर्दशा का वर्णन किया था। दुर्भाग्य से, सरकार ने किसानों की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया।

किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। लगभग साढे चार लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। प्रतिदिन चालीस से पचास किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसानों की आत्महत्या राष्ट्रीय आपदा माननी चाहीए। और जिन किसान विरोधी कानूनोंं के चलते किसानों को
आत्महत्या के लिए बाध्य होना पड़ रहा है, उन्हें तात्काल रद्द कर देने चाहीए। सरकारें बदलीं लेकिन किसानों की दुर्दशा नहीं थमी। यह सरकार भी किसान विरोधी ही निकाली।

इससे कुछ असर होगा?

हां, यह सच है कि एक दिन के उपवास से समस्या का समाधान नहीं होगा, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस से समस्या के समाधान की दिशा में एक कदम आगे बढेगा।. अक्सर हम लोग यही पूछते हैं कि हम क्या कर सकते हैं?
हम सरकार नहीं हैं। हम साधारण लोग हैं। हमारे पास क्रूर कानूनों को बदलने की शक्ति नहीं है। मैंने सोचा की, अगर मेरे घर में ऐसी घटना होती है, तो मैं क्या करता? कम से कम एक दिन मेरे गले से निवाला नहीं उतरता। 19 मार्च के उपवास के पीछे यही विचार है। यही भावना है।

आप क्या कर सकते हैं इससे पहले आपके सवाल पूछे मैं आपको बताना चाहता हूं कि आप 19 मार्च को किस तरह से अपना योगदान दे सकते हैं।

जो लोग, किसीं स्थान पर बैठ कर सामूहिक रूप से अनशन कर सकते हैं वह ऐसा जरूर करें। लेकिन जो दिनभर बैठ नहीं सकते, वे जहां भी हो वहीं व्यक्तिगत उपवास कर सकते हैं, वे अपना काम करते हुए उपवास कर सकते हैं। यदि चाहें तो उपवास की समाप्ति के लिए एक साथ इकट्ठा हो सकते हैं। सोशल मीडिया पर इसकी घोषणा कर सकते हैं ।
यह अन्नत्याग किसी पार्टी या संगठन का नहीं है। हर संवेदनशील व्यक्ति इस में भाग ले सकता है। सरकारी कर्मचारी भी 19 मार्च का उपवास रख सकते हैं

उपवास हमारा दायित्व?

हमें उपवास इस लिए करना चाहिए, क्योंकि अन्नदाता के प्रति हमे कृतज्ञता व्यक्त करनी है। आज वह संकट में है। उपवास करके हमें अन्नदाता के साथ है, उन्हें अपनी यह भावना बतानी है। अवगत कराना है कि किसान के बेटे बेटियां आज शहर जाने के बाद भी किसानों को नहीं भूले हैं। हम किसानों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करना चाहते हैं।
यह अनशन किसी मांग के लिए नहीं है लेकिन किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? क्यों नहीं रुक रही किसानों की आत्महत्या? इसे रोकने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? मैं उसके लिए क्या कर सकता हूँ? इस पर विचार करने के लिए यह एक दिन का उपवास है।
आप जहां भी हों, इस एक दिन के अन्नत्याग/उपवास को कर सकते हैं। चाहे आप किसी भी पार्टी, संगठन, विचारधारा, पेशे या रोजगार के हों, 19 मार्च को एक दिन का उपवास आवश्य करें! ऐसी विनम्र अपील हम किसानपुत्र आंदोलन की ओर से कर रहे हैं।

किसानों की आत्महत्या की वजह आप क्या मानते हैं ?

आत्महत्या करने वाले किसानों में से अधिकतम किसानों का लागत क्षेत्र (होल्डिंग) एक हेक्टर से कम है। हमारे देश के किसानों का लागत क्षेत्र लगातार घट रहा है और किसानो की आत्महत्यायें बढ रहीं हैं, इन दो बातो में क्या रिश्ता है? सीधी बात है, होल्डिंग कम हो जाने के कारण वह इतना पैसा कमा नही पाता है, जितना उसका परिवार चलाने के लिये जरूरी है। इस हालत के कई तरह के दुष्परिणाम होते जाते हैं। आखिर मौत का रास्ता पकड़ने की मजबूरी हो जाती है।
भरत में 85 प्रतिशत किसानों का होल्डिंग एक हेक्टर, यानी लगभग ढाई एकड से कम हो गया है। ऐसी स्थिती क्यों आयी? इस का मुख्य कारण सीलिंग कानून है। सीलिंग कानून से किसानो की होल्डिंग पर मर्यादा लगा दी गयी। यह कानून मात्र किसानों पर लागू किया गया। खेत जमीन पर लागू किया गया। अन्य जमीन पर नहीं। हमारे देश में कारखानदार हजारों एकड जमीन के मालिक बन सकते हैं। उसे कोई मर्यादा नहीं हैं। यह कानून किसान और कारखानदार के बीच पक्षपात करता है। संविधान के मूलभूत अधिकारो का उल्लंघन करता है। उसे अनुसूची-9 में डालने के कारण वह न्यायालय की कक्ष के बाहर कर दिया गया है। इस लिये वह चला आ रहा है। उद्योगो में कंपनी बन जाती है, किसानों की कंपनियां क्यो नहीं बनी?
यह भी समझ लिजीए की, दुनिया के अन्य देशों में लगातार होल्डिंग बढ रही है। उन का लागत मूल्य घट रही है। उत्पादकता बढ रही है। स्पर्धा में हमारे पिछड़े जाने की बड़ी वजह यहीमाननी जाती है।
किसानों की आत्महत्याओं की जड में यह कानून है।
इसी के साथ आवश्यक वस्तू कानून द्वारा फसल की कीमतें लगातार कम की जाती रही हैं। जमीन अधिग्रहण कानून का इस्तेमाल कर के हजारों एकड़ जमीन कारखानदारों को दी गयी हैं।

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