राज्य सभा का 259वां सत्र आज समाप्त हो रहा है, हालांकि आज एक चिंता का विषय भी है। संसद लोकतंत्र की प्रहरी है और जनता हमारी प्रहरी है और हम जनता के प्रति जवाबदेह हैं।
जनता की सेवा करना हमारा प्राथमिक कर्तव्य है।
संसद के पवित्र सदन लोगों के समग्र कल्याण, चर्चा और विचार-विमर्श और बहस के लिए हैं। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि आज संसद में अव्यवस्था एक नई परंपरा बनती चली जा रही है- एक नया मानदंड बन रहा है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।
यह बहुत चिंताजनक और पीड़ादायक है! संसद में होने वाली बहस, संवाद और विचार-विमर्श का स्थान व्यवधान और शोर शराबे ने ले लिया है।
संसद के कामकाज को ठप करके उसे एक राजनीतिक हथियार बनाना, हमारी राजनीति के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। संसद के ठप रहने से बड़े पैमाने पर लोगों की घोर निराशा हुई है। जनता के मन में हम तिरस्कार और उपहास के पात्र बन रहे हैं।
हमें लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की आवश्यकता है।
भावी पीढ़ी नारों और शोर शराबे से नहीं, बल्कि राष्ट्र के विकास पथ को मजबूत करने की दिशा में हमारे द्वारा किए गए विविध योगदानों से हमें आंकेगी।
बजट सत्र के पहले भाग की उत्पादकता 56.3 प्रतिशत थी, जबकि दूसरे भाग में यह उत्पादकता घटकर मात्र 6.4 प्रतिशत रह गई। समग्र रूप से, सदन की उत्पादकता केवल 24.4 प्रतिशत रही।
राज्य सभा के 103 घंटे 30 मिनट व्यवधानों और शोर शराबे की भेंट चढ़ गए।
आइए सदन के इस निराशाजनक प्रदर्शन पर विचार करें और इसका कोई रास्ता निकालें।
मैं माननीय उपसभापति और उपाध्यक्षों के पैनल के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं और सदन के संचालन में उनके प्रयासों के लिए महासचिव और उनके अधिकारियों की टीम को धन्यवाद देता हूं।
मैं इस अवसर पर आपको और आपके परिवार के सदस्यों को आगामी त्योहारों- ईस्टर, बुद्ध पूर्णिमा, ईद और अन्य त्योहारों की बधाई देता हूं।