चीन का व्यावसायिक रूप से बहिष्कार और आत्मनिर्भर भारत की घोषणाएं नारों तक सीमित

नई दिल्ली : चीन का व्यावसायिक रूप से बहिष्कार और आत्मनिर्भर भारत की घोषणाएं नारों तक सीमित है, असली तस्वीर इसके ठीक उलट है। चीन पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है। पिछले वित्त वर्ष में चीन से भारत का आयात 5 फीसदी बढ़ा है। निर्यात में 28 प्रतिशत की गिरावट आई है। मोदी सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने मांग की कि यह आयात कम करने का समय है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, चीन पर आयात निर्भरता कम करने के लिए रक्षा और सैन्य उपकरणों के आयात पर अस्थायी रूप से रोक लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई है लेकिन वास्तविक उसका असर नहीं है |   कुछ वास्तविक कारणवश उस घोषणा पर अमल नहीं हो रहा है। इसका सबूत नए वित्तीय वर्ष में भी यही है। इतना ही नहीं आयात भी बढ़ रहा है। चीन भारत के तथाकथित सामरिक क्षेत्र में निवेश करने को आतुर है। जैसा कि मोदी सरकार द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र का धीरे-धीरे निजीकरण किया जा रहा है, बीजिंग वहां भी निवेश करने का इच्छुक है। वाणिज्य मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष के भीतर दवाओं के लिए कच्चे माल के आयात को कम करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन दवा की कीमतें पहले से ही बढ़ रही हैं और कोविड समय काल से ही आर्डर बहुत दे रखा था | इसलिए ऐसी परिस्थिति में अगर चीन का कच्चा माल आयात कम होता है तो कीमतें और बढ़ानी पड़ेगी जो सरकार के लिए एक बड़ा समस्या पैदा करेगा। ऐसे में आम आदमी के लिए दवा का खर्चा पूरी तरह से पहुंच से बाहर हो जाएगा। सरकारी सूत्रों का कहना है कि इसलिए घोषित होने पर भी आयात निर्भरता को कम करने की कोई संभावना फिलहाल नहीं दिख रहे हैं।

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