थम नहीं रहा किसानों की आत्महत्या का सिलसिला

हाल में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद में जानकारी दी थी कि देश भर में 2017 से 2021 के चार सालों में देश में कुल 28,572 किसानों ने आत्महत्या की है। कृषि आधारित देश में किसानों की आत्महत्या का यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है। उधर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट और डाउन टू अर्थ की सालाना रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2023’ में खुलासा हुआ है कि देश में औसतन हर दिन 30 किसान और खेतिहर मजदूर (कृषि श्रमिक) आत्महत्या कर रहे हैं जबकि आईआईईडी की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर दिन कृषि से जुड़े 29 लोग आत्महत्या कर रहे हैं। गैर सरकारी आंकड़ों को देखें तो हर साल औसतन 15,168 किसान आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं जिनमें से करीब 72 फीसदी ऐसे छोटे किसान होते हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। किसानों की आत्महत्या के मामलों में सबसे बड़ा कारण क़र्ज़ रहा है।

संसद में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की तरफ से एक सवाल के लिखित जवाब में दी गयी जानकारी के मुताबिक 2017 से 2021 के बीच देश में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आये। वहां इस अवधि में 12,552 किसानों ने आत्महत्या की। मंत्रालय ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से यह आंकड़े बताये। आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों (2017-21) में पंजाब के कुल 1,056 किसानों ने आत्महत्या की। वहीं कुल 1,056 मामलों में से 2017 में 243, 2018 में 229, 2019 में 239, 2020 में 174, और 2021 में 171 मामले दर्ज किए गए थे। इसके अलावा, तेलंगाना में 2017 में 846, 2018 में 900, 2019 में 491, 2020 में 466 और 2021 में 352 किसानों ने आत्महत्या की है।

हैरानी की बात यह है कि देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल में 398 किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें 2017 में 110, 2018 में 80, 2019 में 108, 2020 में 87 और 2021 में 13 किसानों ने आत्महत्या की। हरियाणा में इस दौरान 13 किसानों ने आत्महत्या की जबकि राजस्थान में 7, मध्य प्रदेश में 1226 किसानों ने आत्महत्या की। इसमें 2017 में 429, 2018 में 303, 2019 में 142, 2020 में 235 और 2021 में 117 किसानों ने आत्महत्या की। कर्नाटक के 6095 किसानों ने आत्महत्या की जिसमें 2017 में 1157, 2018 में 1365, 2019 में 1331, 2020 में 1072 और 2021 में 1170 किसानों ने जान दी। आंध्र प्रदेश में 2413 किसानों ने आत्महत्या की जिसमें 2017 में 375, 2018 में 365, 2019 में 628, 2020 में 564 और 2021 में 481 किसानों ने आत्महत्या की।

आत्महत्या करने वालों में कृषि श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है। साल 2021 में 5,318 किसानों ने आत्महत्या की, जबकि 2020 में 5,579 किसानों ने आत्महत्या की थी। इसके अलावा 2020 में 5,098 कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2021 में 5,563 कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की। सरकार की एक रिपोर्ट में इसके तीन कारण बताए गए हैं – मानसून की अनिश्चितता से फसलों को नुकसान, जल संसाधनों का अभाव और कीटों का हमला अथवा रोग।
जलवायु परिवर्तन भी कारण
क़र्ज़ आम तौर पर किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण माना जाता है। लेकिन इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) की एक रिसर्च रिपोर्ट में बात सामने आई है कि औसत से कम बारिश और उसके पैदा हुए सूखा भी किसानों की आत्महत्या का बड़ा कारण है। रिपोर्ट में बताया गया है कि बारिश की भिन्नता और किसानों की आत्महत्या के बीच के संबंध को समझने के लिए पांच राज्यों जहां किसानों की आत्महत्या ज्यादा हुई है वहां के वर्षवार आंकड़े का विश्लेषण किया। इन राज्यों में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तेलंगाना शामिल थे।

शोध के मुताबिक 2014-15 से 2020-21 के बीच इन राज्यों के बारिश पैटर्न को देखा और पाया कि इस दौरान सामान्य से कम बारिश और उसके कारण पैदा हुई सूखे की स्थिति किसान आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि का कारण बनी। जब साल में होने वाली बारिश सामान्य से 5 फीसदी कम-ज्यादा हुई तब आत्महत्या से मरने वाले किसानों की औसत संख्या 810 थी। वहीं यदि बारिश सामान्य से 25 फीसदी कम है तब आत्महत्या करने वाले किसानों की औसत संख्या 1,188 थी।

अध्ययन बताता है कि जलवायु परिवर्तन ने भारत में सूखे क्षेत्र में वृद्धि की है। वर्ष 2020-2022 में देश का दो-तिहाई हिस्सा सूखे की चपेट में था। सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र का 62 फीसदी, मध्यप्रदेश का 44 फीसदी  और छत्तीसगढ़ के 76 फीसदी हिस्सा सूखे की जद में है। इन्हीं राज्यों में किसानों की आत्महत्या दर काफी ज्यादा रही।

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