शिवसेना ५७ वर्षों की हो गई, इसे एक चमत्कार ही कहना होगा। अपनी स्थापना के बाद से ही शिवसेना संकटों और फूट का सामना करती आई है। किसी ने चाहे कितनी भी बेईमानी की हो, तब भी ‘सामना’ शिवसेना ही जीतती आई और सभी महाराष्ट्रद्रोही कचरे की भांति उड़ गए। आज का स्थापना दिवस खास ही कहा जाएगा। वर्षभर पहले इसी समय शिवसेना के ४० गद्दारों ने मां के दूध के साथ गद्दारी की थी। वो भाजपा में शामिल हो गए और ‘हमीं सच्ची शिवसेना’ का ढोल पीटने लगे। तात्पर्य यह है कि शिवसेना की स्थापना के समय से इस तरह की प्रतिशिवसेना स्थापना करनेवाले आए और काल के गाल में समा गए। पुरातन काल में प्रतिसृष्टि निर्मित हुई। प्रतिशिर्डी, प्रतिबालाजी इत्यादि चलता ही रहता है; परंतु सोने के समक्ष लोहा वैâसे टिकेगा? चुराए हुए विधायकों, सांसदों की संख्या का मतलब बैठक नहीं होता। शिवसेना के गढ़ने-बढ़ाने में, बल्कि महाराष्ट्र को गढ़ने-बढ़ाने में तुम्हारा योगदान क्या है? शिवसेना स्थापित हुई उस समय तुम बिस्तर गीला कर रहे थे। अब कहते हैं, ‘हमीं शिवसेना के निर्माता!’ इस तरह का ताव दिखानेवालों की कमर के वस्त्र दिल्ली दरबार में खड़े होते ही डर से भीग जाते हैं। इनके नेता मोदी और शाह, जो महाराष्ट्र की अस्मिता की नींव ही उखाड़ फेंकने को निकले हैं। अब सुनने में आ रहा है कि ये प्रतिवाले, उनकी प्रतिशिवसेना का स्थापना दिन मना रहे हैं। ऐसे ‘प्रति’ मंडल के न तो बाजुओं में दम है, न ही सीने में स्वाभिमान की हुंकार और जिद। सारा खेल पैसों का है। दिल्ली के चरणों में न्योछावर करके महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री पद हासिल करनेवाले शिवसेना का नाम लेते हैं तो शिवसेना के लिए खून बहानेवाली असंख्य आत्माएं, चिढ़कर तिलमिला उठती होंगी। शिवसेना बाघ की दहाड़ है। ५७ वर्षों से वो गूंज रही है। ये दहाड़ गूंज न सके, इसके लिए आज तक क्या कम प्रयास हुए हैं? गद्दार भेड़ियों को बाघ की खाल पहनाकर नकली बाघ बनाने के प्रयोग महाराष्ट्र में अनेक बार हुए, पर उन सभी प्रयोगों को स्थानीय जनता ने असफल कर दिया। न प्रयोग चले, न उसके लेखक-निर्देशक-नेपथ्यकारों के नामो-निशान रहे। अब भी ४० गद्दार पात्रों को इकट्ठा करके महाराष्ट्र में नकली बाघों का एक ‘घात प्रयोग’ जनता के माथे फोड़ा गया है। जनता ने भले ही इस प्रयोग की ओर पीठ कर ली हो, तब भी ये ४० पात्र खुद ही से खुद को नचा रहे हैं। आखिर ईडी सरकार का नमक अदा करना है। इसके लिए घातपने और गद्दारी का स्थापना दिन मनाना ही होगा। इस उत्सव का दिखावा मतलब दहाड़ का आभास कराना ही होगा। यह आभास बनावटी साहस है, यह महाराष्ट्र का अबोध बालक तक बता देगा। ईडी सरकार और चुनाव आयोग द्वारा दिए गए ‘उधार’ के माल पर ‘घातियों’ की राजनीतिक दुकानदारी शुरू है। संविधान विशेषज्ञों से लेकर अदालतों तक सभी ने ‘घाती’ बाघों को नकली और गैरकानूनी बताया है। उनकी बाघ की खाल को नोचकर निकाला है। अब राजनीतिक दुकानदारी जारी रखनी है तो ‘नकल’ करनी ही पड़ेगी। साहूकार बनकर पैंतरे चलाने ही होंगे। ‘घाती’ गुट की यह राजनैतिक मजबूरी है। उस मजबूरी के तहत सच्चे बाघ की नकल करने की, खुद को विचारों के उत्तराधिकारी इत्यादि कहलवाने की नौटंकी शुरू है। पर आखिर नकली तो नकली और असली वो असली। गद्दार तो गद्दार और खुद्दार वो खुद्दार। महाराष्ट्र की जनता खुद्दार कौन और महाराष्ट्र धर्म की पीठ में खंजर मारनेवाले गद्दार कौन, यह जानती है। महाराष्ट्र का सच्चा बाघ और महाराष्ट्र से बेईमानी करनेवाले ‘घाती’ बाघ के बीच का फर्क जनता जानती है। दहाड़ मारता है वो बाघ होता है और चीखता है वो भेड़िया। महाराष्ट्र में फिलहाल दहाड़ के नाम पर गद्दार भेड़ियों का सिकुड़ना शुरू है। ऐसे कई गीदड़-भेड़ियों को पिछले ५७ वर्षों में महाराष्ट्र के बाघ ने शिकार करके खत्म किया है। महाराष्ट्र में पिछले ५७ वर्षों से बाघ की दहाड़ ही गूंज रही है और गूंजती रहेगी। महाराष्ट्र के घाती गीदड़ों-भेड़ियों की मिमियाहट बाघ की दहाड़ में दब जाती है। शिवसेना यह मर्द मावलों की भगवद्गीता है। आज मा. बालासाहेब हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके ज्वलंत विचार ही हमारा अग्निपथ है। सच्ची शिवसेना वही, जिसके पेट में एक और होंठ पर दूसरा नहीं। होंठ पर एक और पेट में कुछ और वाली ढोंगी चाल शिवसेना नहीं जानती। यहां सुबह निष्ठा की कसम खाकर, रात के अंधेरे में सूरत का ढोकला खाने के लिए भाग जाने के ओछे धंधे शिवसेना के खून में नहीं है। शिवसेना ५७ वर्षों की हो गई और उसकी घुड़दौड़ इसके आगे भी जारी ही रहेगी, वह इसी प्रामाणिकता की वजह से। फिर चाहे कितनी ही बिल्लियां रास्ते में आ जाएं।