नई दिल्ली: और सिर्फ कुछ घंटे! इसके बाद ही बहु प्रतीक्षित महागठबंधन का बैठक होगी बिहार के राजधानी पटना में। जहाँ तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी 1 दिन पहले ही यानी कि 22 जून खुद हाज़िर होंगे अल्पसंख्यक समुदाय के दो नेताओं डेरेक ओ'ब्रायन और फिरहाद हाकिम के साथ | ममता बनर्जी 22 जून को आरजेडी नेता लालू यादव से मिलने जाएंगे महागठबंधन की बैठक से पहले यह मुलाकात महत्वपूर्ण माना जा रहा है | तृणमूल सुप्रीमो के सलाह के बाद पटना में गाँधी मैदान के आसपास महागठबंधन की बैठक होने जा रही है, शर्त यह है कि बैठक में भाग लेनेवाले विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष और शीर्ष नेतृत्व मौजूद रहे | कोई भी पार्टी सिर्फ प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजेगा और अगले बैठकों के लिए भी ऐसा मानेगा। इसी तरह मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ राहुल गांधी भी बैठक में मौजूद होंगे |कहने की जरूरत नहीं है कि देश की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस बैठक का केंद्रबिंदु हैं। इसलिए कांग्रेस और अन्य लोग देख रहे हैं कि वह क्या नया फॉर्मूला देते हैं। तृणमूल नेता हालांकि शुरू से ही अपने रुख पर अड़े हुए हैं, "लड़ाई होने दो, एक से एक की, जो जहां मजबूत है, उसे वहां लड़ने दो। बाकी विपक्षी पार्टियों को उनका समर्थन करने दें, इसी फॉर्मूले के साथ"| तृणमूल का मानना है कि इस फॉर्मूले से नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से हटाना संभव है, ममता पहले भी कई बार क्षेत्रीय दलों को मजबूत करने का जिक्र कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि देश की गैर-भाजपाई पार्टियों को एक छतरी के नीचे आना चाहिए, ताकि लड़ाई केवल भाजपा और विपक्ष के बीच हो | राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक, देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी इस पर सहमति जताई है, अगले शुक्रवार को पटना की बैठक में इस मामले पर चर्चा होगी | खासकर बसपा सुप्रीमो मायावती भी आज एक बयान जारी कर कहा कि उनकी नजर भी विपक्षी गठबंधन के बैठक पर है | सूत्रों के मुताबिक, असहमति के मुद्दों को छोड़कर, उस दिन की चर्चा इस बात पर केंद्रित होगी कि वे कौन कौन मुद्दों पर सहमत हैं। क्योंकि विपक्ष एकजुट है, ऐसा छवि पूरे देश के सामने पेश करना महत्वपूर्ण है। मोदी के खिलाफ 20 विपक्षी दल महागठबंधन बना रहे हैं अगले शुक्रवार 23 जून को पटना में उस मंच पर विपक्षी एकता ममता बनर्जी के इर्द-गिर्द घूमेगी | क्योंकि, जदयू, डीएमके, समाजवादी पार्टी, आप जैसी पार्टियों ने शुरू में उनके प्रस्ताव का समर्थन किया है, एक पार्टी थी कांग्रेस वह भी सहमत होगी, ऐसा सूत्रों का कहना है। तृणमूल सुप्रीमो के साथ बाकि पार्टीयाँ एकमत है, केंद्र की मोदी सरकार अगर किसी राज्यों के अधिकारों पर हस्तक्षेप करती है तो उसके विरोध में एक सामूहिक आवाज उठानी है | 17 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है, जहाँ एक आर्डिनेंस लाएगी केंद्र सरकार, उसपर चर्चा होगी, पटना में विपक्षी महागठबंधन की एकता को लेकर चर्चा होगी | यह पहला बैठक होगा उसके बाद, डीएमके के कहने पर विपक्षी महागठबंधन की अगली बैठक चेन्नई में हो सकता है, लेकिन तृणमूल सुप्रीमो ने दिल्ली में बैठक नहीं रखने की सलाह दी है | राज्यसभा में तृणमूल नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने कहा, ''इस तरह के मतभेदों को दूर करने के लिए सभी दलों के नेता बैठक कर रहे हैं, ज़रूर रास्ता निकलेगा'' | कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, ''पटना की बैठक में विकल्प तलाशेगी, संवैधानिक मूल्यों पर लड़ाई हो तो विपक्षी गठबंधन संभव है। अगर विपक्ष एकजुट है तो तीसरा यूपीए भी संभव है" | कांग्रेस भी नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा दिल्ली के नौकरशाहों का नियंत्रण अपने हाथों में रखने के लिए पारित अध्यादेश पर अपनी स्थिति स्पष्ट किए बिना बातचीत का दरवाजा खुला रखने की कोशिश कर रही है। अध्यादेश को कानून में बदलने के लिए संसद के आगामी सत्र में एक विधेयक पेश किया जाएगा। राज्यसभा में भाजपा सदस्यों की संख्या जादुई संख्या से बहुत कम है। लिहाजा विपक्ष को एकजुट कर सत्ताधारी खेमे को रोकने के लिए केजरीवाल सक्रिय हैं | अधिकांश विपक्षी दलों ने जहां केजरीवाल को समर्थन देने का आश्वासन दिया है, वहीं कांग्रेस ने अभी तक अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, अध्यादेश का विरोध करने पर कोई रोक नहीं है लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि बदले में आप कांग्रेस के लिए क्या करेगी। तृणमूल के अखिल भारतीय महासचिव अभिषेक बनर्जी इस बात से सहमत हैं कि मोदी का निष्कासन अब राज्य की राजनीति के जटिल समीकरण का है और वही अर्जुन का लक्ष्य होना चाहिए। हाल ही में 'नवजोआर' कार्यक्रम के दौरान डायमंड हार्बर स्थित कैंप में बैठे निजी बातचीत में उन्होंने कहा, "अगर एक एक के खिलाफ राज्य आधारित लड़ाई हो तो भाजपा का जीतना नामुमकिन है, इसलिए क्षेत्रीय पार्टियों को मजबूत कर भाजपा विरोधी महागठबंधन को पूरी तरह से एकसाथ लाने की कोशिश की जानी चाहिए"|