गांव की एक महिला के नदी में बह जाने से ग्रामीणों ने जल सत्याग्रह कर कहा पुल नहीं तो वोट नहीं
झारखंड के सुदूरवर्ती सिमडेगा जिले में अब भी कई गांव ऐसे हैं, जहां पहुंच पथ नहीं है। लोगों को नदी के सहारे दूसरे जगहों पर जाना पड़ता है। अगर जोरदार बारिश हो गयी, तो लोगों को कमर भर पानी में चल कर दूसरी तरफ पार होना पड़ता है। बरसात के दो महीने पूरा गांव टापू में बदल जाता है। जन प्रतिनिधि, सरकारी नुमाइंदों के कोताही भरे रवैये से नाराज गांव वालों ने इस बार चुनाव के बहिष्कार की चेतावनी दी है। गांव वालों ने इसको लेकर जल सत्याग्रह कर वोट वहिष्कार करने की बातें कहीं। तब कहीं जाकर कांग्रेस विधायक नमन विल्सन कोंगाड़ी ने सरकार को ढोलबीर नदी में पुल बनाने की अनुशंसा करने की बात कही। जिले के कोलेबिरा स्थित बरसलोया पंचायत का बरटोली गांव बारिश के दिनों में शापित गांव बन जाता है। यहां के 50 से अधिक घरों के लोग बारिश के दो महीने अपने घरों में रहने को विवश हो जाते हैं और सरकारी सिस्टम को कोसते रहते हैं।
पिछले सप्ताह बरटोली निवासी 60 वर्षीया सूको सोरेंग की मौत नदी में बह जाने के कारण हो गई। उसका शव नदी के झाड़ी मे फंसा हुआ था। कोलेबिरा थाना में सूचना मिलने पर पुलिस टीम वहां पहुंची। शव को स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से बाहर निकाला गया और उसकी पहचान की गई। शव को पोस्टमार्टम के लिए सिमडेगा के सदर अस्पताल भेज दिया गया। इस घटना को लेकर बरसलोया बरटोलीवासियों का सब्र जवाब दे गया।
ग्रामीणों ने नदी में खड़े होकर पुल निर्माण के लिए जल सत्याग्रह किया। कहा गया कि इससे पहले भी कई लोगों की जान इस नदी में बह जाने के कारण हुई है। नदी भर जाने के कारण गांव में बरसात के दिनों में लोग कई सुविधाओं से वंचित हो जाते हैं। जंगल और नदी से घिरा हुआ गांव टापू के जैसा हो जाता है। लोगों ने बताया कि बरसात से एक – दो महीना पहले राशन घर में ले आया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ दिन पहले एक गर्भवती को बरसात के दिनों में ही कुर्सी पर बिठाकर नदी पार करके स्वास्थ्य केंद्र, कोलेबिरा पहुंचाया गया था।
जल सत्याग्रह कर रही दामिनी कुमारी ने कहा कि उसके गांव की सुको सोरेंग की नदी में बहने से मौत हो गयी, क्योंकि नदी में पानी का बहाव काफी अधिक था। पुल नहीं होने के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बारिश के दिनों में अगर कोई बीमार पड़ जाये, या राशन खत्म हो जाने पर काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. अब वे लोग 2024 के चुनाव में वोट का बहिष्कार करेंगे। माइकल सोरेंग ने कहा कि बारिश के दिनों में आवागमन पूरी तरह ठप हो जाता है। पैदल नदी पार करना पड़ता है, गले तक पानी भरा रहता है। बच्चे, बुजूर्ग सभी नदी के पानी के कम होने का महीनों से इंतजार करते हैं।