नई दिल्ली : बंगाल भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व वर्तमान उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने 1 दिन कहा था की गाय से सोना मिलती है, शायद यह बात जल्दी साबित होने जा रहा है | क्या गोबर और गोमूत्र से टिकाऊ और रोजमर्रा के उत्पाद बनाकर कृषक समुदाय का आर्थिक विकास संभव है ? केंद्र सरकार के आदेश पर रिसर्च में जुटे बीएचयू-आईआईटी (बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी) के शोधकर्ता। उनका मानना है कि यदि शोध सफल रहा तो ग्रामीण भारत का आर्थिक स्वरूप बदला जा सकता है। एक हालिया अध्ययन, ”मवेशी के गोबर और मूत्र के बेहतर उपयोग के लिए वैज्ञानिक लक्षण वर्णन विधियां: एक संक्षिप्त समीक्षा” भी यही दावा करती है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस तरह से रिचार्ज के लिए बीएचयू आईआईटी को वित्तीय सहायता भी प्रदान की है।
शोध दल के सदस्यों में से एक और स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी (बीएचयू) के एक प्रोफेसर का कहना है कि बिना दूध वाले किसानों को भी गोमूत्र और गाय के गोबर से आर्थिक लाभ हो सकता है। हालाँकि, वह स्वीकार करते हैं कि इस तरह के वैज्ञानिक शोध में खामियाँ बहुत हैं। उनकी कोशिश उस कमी को दूर करने की होगी |
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह शोध न केवल समग्र ज्ञान बढ़ाता है, बल्कि भविष्य में और अधिक प्रगतिशील शोध के द्वार भी खोलता है। गाय के गोबर और गोमूत्र की ‘प्रोफाइलिंग’ करके प्राचीन और पारंपरिक ग्रामीण विचारधाराओं को वैज्ञानिक मानदंडों में शामिल करना संभव है। जिससे भविष्य में गोबर और गोमूत्र से बने टूथपेस्ट, हेयर ऑयल, शैंपू, कंडीशनर आदि से आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
एक व्यक्तिगत बातचीत में बीएचयू आईआईटी के अध्यापक ने कहा, ” इस तरह के शोध के लिए जिसका प्रभाव गांव में पढ़ने वाले हैं, हम हमारे निदेशक प्रो.प्रमोदकुमार जैन का आभार व्यक्त करता हूं”। उनका यह भी मानना है कि ऐसे विशेष शोध से भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गायों की उपयोगिता मजबूत होगी |