लालू यादव का राजनीतिक सफर :
बिहार और भारत के राजनीतिक पटल पर लालू यादव एक अमिट सितारे की तरह हैं। चाहे सियासी बातें हो या बेबाक ठेठ अंदाज, लालू यादव एक ऐसे नेता हैं, जिनकी लोकप्रियता देश-विदेश तक रही। उनके फैसलों से अक्सर विरोधी चकमा खा जाते थे।बिहार के दो बार सीएम और तीन बार पत्नी को CM बनाने वाले लालू ने रेल मंत्रालय संभाला तो उनके प्रबंधन की चर्चा विदेश तक पहुंची। राजद सुप्रीमो का राजनीतिक सफर काफी रोचक है।
उन्होंने एक छात्र नेता के रूप में पटना विश्वविद्यालय में राजनीति में प्रवेश किया और 1977 में 29 वर्ष की आयु में जनता पार्टी के लिए लोकसभा के सबसे कम उम्र के सदस्य के रूप में चुने गए । वह 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने । उनकी पार्टी जद (यू) के नीतीश कुमार के साथ साझेदारी में 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में सत्ता में आई । यह गठबंधन तब ख़त्म हुआ जब नीतीश ने इस्तीफा दे दिया और राजद अपदस्थ होकर विपक्षी पार्टी बन गयी। 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव में , राजद बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनी रही, और जदयू के साथ मिलकर वर्तमान में सरकार का नेतृत्व कर रही है।
मामला 3 करोड़ 76 लाख रुपये की अवैध निकासी से जुड़ा है।मार्च 2018 में सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में लालू यादव को सजा सुनाई थी। उन्हें 14 साल की कैद के साथ 60 लाख रुपये के जुर्माने की सजा दी गई थी। अप्रैल 2021 में झारखंड हाईकोर्ट ने इस मामले में लालू यादव जमानत दे दी थी।चारा घोटाला मामले में लालू यादव को जेल भी जाना पड़ा और वे कई महीने तक जेल में रहे भी। लगभग सत्रह साल तक चले इस ऐतिहासिक मुकदमे में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने लालू प्रसाद यादव को वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के जरिये 3 अक्टूबर 2013 को पाँच साल की कैद व पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।।
लालू प्रसाद यादव ने 1 जून 1973 को राबड़ी देवी से अरेंज मैरिज की , और उनके दो बेटे और सात बेटियां हुईं।
बड़ा बेटा: तेज प्रताप यादव
छोटा बेटा: तेजस्वी यादव
सबसे बड़ी बेटी: मीसा भारती
दूसरी बेटी: रोहिणी आचार्य यादव
तीसरी बेटी: चंदा यादव
चौथी बेटी: रागिनी यादव – समाजवादी पार्टी के नेता राहुल यादव से शादी की ।
5वीं बेटी: हेमा यादव
छठी बेटी: अनुष्का यादव (धन्नू) – चिरंजीव राव से शादी की
सबसे छोटी बेटी: राज लक्ष्मी यादव – तेज प्रताप सिंह यादव से शादी की।
बिहार के एक छोटे से गांव से आने वाले लड़के ने प्रदेश और देश की सियासत पर अपनी अलग छाप छोड़ी।
लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज के फुलवरिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कुंदन राय और मां का नाम मरछिया देवी था।लालू प्रसाद यादव (जन्म: 11 जून 1948) भारत के बिहार राज्य के राजनेता व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष हैं। वे 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। बाद में उन्हें 2004 से 2009 तक केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में रेल मन्त्री का कार्यभार सौंपा गया। जबकि वे 15वीं लोक सभा में सारण (बिहार) से सांसद थे उन्हें बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में रांची स्थित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की अदालत ने पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा के लिए उन्हें बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार रांची में रखा गया था।केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के विशेष न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा जबकि उन पर कथित चारा घोटाले में भ्रष्टाचार का गम्भीर आरोप सिद्ध हो चुका था।3 अक्टूबर 2013 को न्यायालय ने उन्हें पाँच साल की कैद और पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा दी। वर्तमान समय पर वेल पर है।वे अभी भारतीय राजनीति में अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
गरीबी में बीता लालू का …...
लालू यादव का बचपन संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में अपनी गरीबी का जिक्र किया है। वे बताते हैं कि उन्हें खाने के लिए भरपेट भोजन नहीं मिलता था। पहनने को कपड़े नहीं होते थे। गांव में वे भैंस और अन्य मवेशी चराते थे।
एक घटना ने गरीबी से जूझ रहे लालू की जिंदगी की दिशा तय कर दी। हुआ यूं कि लालू बचपन से ही बेहद शरारती थे। एक बार उन्होंने एक हींगवाले का झोला कुएं में फेंक दिया। जिसके बाद हींगवाले ने खूब हंगामा किया। इसके बाद तय हुआ कि लालू को पटना भेजा जाए।
मां के साथ लालू यादव :
लालू यादव पढ़ने के लिए अपने भाई के पास पटना आ गए। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय के बीएन कॉलेज से एलएलबी और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री ली। फिर पढ़ाई पूरा करने के बाद उन्होंने बिहार पशु चिकित्सा कॉलेज, पटना में क्लर्क का काम किया। उनके बड़े भाई इसी कॉलेज में एक चपरासी थे।
छात्र राजनीति से सियासत में एंट्री :
लालू यादव ने पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (पीयूएसयू) के महासचिव बने और अपने राजनैतिक जीवन की पहली सीढ़ी पर कदम रखा। इसके बाद 1973 में वे पटना यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष बने।
जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल के खिलाफ बिगूल फूंक दिया। जेपी आंदोलन के साथ जुड़कर लालू प्रसाद यादव भी जेल गए। यहीं से लालू प्रसाद यादव की राजनीति चमकी। उन्होंने साल 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और सबसे कम उम्र (29 साल) में सांसद बने।
जब लालू यादव के मौत की खबर फैली
आपातकाल के दौरान एक बार तो लालू प्रसाद यादव की मौत की अफवाह से सनसनी मच गई थी। सभी छात्र सड़कों पर उतर आए। उस वक्त तक लालू बतौर जाने-माने नेता में शुमार किए जाने लगे थे।
बात तब की है, जब आपातकाल के दौरान सरकार ने आंदोलनकारियों के खिलाफ सेना को उतार दिया था। उस दिन सेना ने आंदोलनकारियों को जमकर पीटा था। इस घटना के बाद यह अफवाह फैल गई कि सेना की पिटाई से बुरी तरह घायल लालू यादव की मौत हो गई है।
पूरे प्रदेश में खलबली मच गई। लालू परिवार में तो कोहराम मच गया। बाद में लालू यादव खुद सामने आए और उन्होंने बताया कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है।
बड़ी बेटी का नाम मीसा क्यों?
साल 1973 में लालू यादव की शादी राबड़ी देवी के साथ हुई थी। तीन साल बाद यानी साल 1976 में लालू और राबड़ी देवी की एक बेटी हुई। उस समय आपातकाल में लालू यादव को आंतरिक सुरक्षा कानून यानी मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया था।
‘गोपालगंज टू रायसीना’ में लालू कहते हैं कि “मैंने अपनी बेटी का नाम मीसा इसलिए रखा कि बेटी के नाम से जेपी आंदोलन को याद करके आगे की राजनीति की डगर पर चलेंगे।”
जब लालू यादव ने लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाया
1990 में देश में अयोध्या राममंदिर का मुद्दा काफी जोरों पर था। उस समय भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली। जब आडवाणी रथयात्रा लेकर बिहार पहुंचे तो तब तक लालू यादव ने उनकी रथयात्रा रोकने की ठान ली।
23 अक्टूबर को बिहार के समस्तीपुर में लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया।
उनकी गिरफ्तारी के बाद देश की सियासत में खलबली मच गई। भाजपा ने केंद्र की वीपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। हालांकि, आडवाणी की रथयात्रा रोकने के बाद लालू एक ताकतवर राजनेता के रूप में उभरे।
लालू प्रसाद की जीवनी ‘द किंगमेकर, लालू प्रसाद की अनकही दास्तान’ के लेखक जयन्त जिज्ञासु दैनिक जागरण से बातचीत में बताते हैं कि “महात्मा गांधी अपने समय के उपज कहे जाते थे। लालू यादव भी अपने समय के विंडबनाओं, समाजिक असामनताओं के बीच उभरे थे। जेपी मूवमेंट ने एक तरह लालू यादव, सत्यपाल मलिक, शरद यादव को बनाया है। लालू यादव जी ने बिहार में एक सियासी प्रतिमान स्थापित किया। लालू प्रसाद ने लोगों को आत्महीनता से निकाला। जो लोग सुप्तावस्था में थे, उनको झकझोरा। उनके शब्दकोष और बातों में नेृतत्व की बात थी। कर्पूरी जी के बाद लालूजी ही जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।”
(रामजन्मभूमि मामले में लालू यादव ने जनता से की थी अपील)
‘गैया बकरी चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए’
“लालू जी का सबसे ज्यादा फोकस पढ़ने-लिखने पर था। लालू प्रसाद ने आह्वान किया कि ‘पढ़ो या मरो’। इसी के तर्ज पर उन्होंने चरवाहा विद्यालय की स्थापना की। जिससे कौशल का विकास भी हो और पढ़ाई भी हो। गैया बकरी चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए। का भी नारा राजद सुप्रीमो ने ही दिया था।
लालू यादव ने दबे-कुचलों को स्वर दिया
“बिहार में पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यकों का एक बड़ा हिस्सा लालू यादव के साथ है क्योंकि 90 के दशक में जब बिहार में छूआछूत, ऊंच-नीच का भेद गहरा था, उस समय राजद सुप्रीमो ने पिछड़ों को अस्मिता के साथ जीवन जीना सिखाया। दबे-कुचले रहनेवाले हाशिये पर चले जानेवालों को लालू यादव ने स्वर दिया था।”
पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद लिए तीन फैसले
मार्च 1990 में लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए। इस दौरान उन्होंने तीन अहम फैसले लिए।
•पहला उन्होंने ताड़ी की बिक्री पर लगे कर और उपकर को हटा दिया।
•उन्होंने 150 चरवाहा विद्यालय खुलवाए, जिससे चरवाहे मवेशी चराते समय पढ़ाई कर सकें। आज चरवाहे विध्यालय का नामोनिशान मिट गया है।उनका यह प्रयास विवादों में रहा।
•उन्होंने खेतिहर मजदूरों का न्यूनतम पारिश्रमिक को 16.50 रुपये से बढ़ाकर 21.50 रुपये कर दिया था।
सियासत की काली कोठरी की दाग से नहीं बच पाए लालू यादव
कहा जाता है कि राजनीति, काजल की कोठरी होती है, जो इसमें जाता है वह काला हो जाता है। लालू यादव भी इससे अछूते नहीं रहे। उनके दामन पर भी इस काली कोठरी के काजल के दाग लगे, जो उनके राजनीतिक जीवन के लिए नासूर बन गए।
राजद सुप्रीमो पर चारा घोटाले का आरोप लगा। इस आरोप के बाद उन्होंने 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लालू प्रसाद यादव के लिए यह टर्निंग प्वाइंट था। इसी घटना के बाद राबड़ी देवी प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
चारा घोटाले में नाम आने के बाद लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद तो छोड़ दिया, लेकिन उनकी इच्छा थी कि उन्हें जनता दल का अध्यक्ष रहने दिया जाये, पर ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद लालू यादव ने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया।
रेल मंत्री रहते लालू के प्रबंधन की हुई तारीफ
लालू यादव ने रेल मंत्रालय संभाला तो उनके प्रबंधन का डंका देश-विदेश तक बजा। लालू यादव का दावा है कि रेल मंत्रालय संभालने के दौरान रेलवे ने काफी लाभ कमाया था। खास बात रही कि ये उपलब्धि बिना यात्री किराए और माल भाड़े में बढ़ोतरी किए हासिल की गई।इस दौरान भी उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा।जिसकी जांच जारी है।
वहीं लालू यादव के रेल प्रबंधन की चारों तरफ तारीफ हुई। लालू के प्रबंधन का कौशन का लोग लोहा मानने लगे। यही वजह है कि 2004 में लालू ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद में छात्रों को प्रबंधन का गुर सिखाया।
छात्रों को संबोधित करते हुए रेल मंत्री लालू प्रसाद ने कहा था कि ‘रेलवे देसी गाय नहीं, जर्सी (दुधारू नस्ल) गाय है।’ तत्कालीन रेलमंत्री का ये जुमला लोगों को खूब भाया था।
लालू यादव एक अच्छे कुक, राहुल गांधी भी मुरीद
लालू यादव के निजी जीवन पर बात करें तो वो खाना खाने और बनाने दोनों के शौकीन हैं। हाल ही में, राहुल गांधी ने दिल्ली के जायकों का लुत्फ उठाया था। राहुल गांधी ने लालू यादव के बनाए मटन खाने की जिक्र किया और तारीफ कर चुके हैं।
लालू यादव मटन और मछली बहुत अच्छा बनाते हैं। वो खाने-पीने के शौकीन हैं। उनको आम, लिट्ठी और दही बेहद पसंद हैं।
शरद यादव ने एक बार इंटरव्यू में कहा कि राजनीति में लालू थोड़े असावधान हो सकते हैं लेकिन निजी जीवन में बेहद शानदार व्यक्ति हैं।
लालू यादव का तकिया कलाम
लालू यादव ‘धत बुड़बक’ और ‘क्या फजुला बात करते हो, ये अक्सर कहते हुए सुने जाते हैं। लालू का ‘धत बुड़बक’ कहना काफी चर्चा में रहा और आज भी कॉमेडियन इसका काफी इस्तेमाल करते हैं।
जयंत बताते हैं कि लालू यादव का शब्दकोष, उनकी बात की शैली और लोगों से जुड़ने की कला उन्हें लोगों से अलग बनाती है। वे बिहार के जननेता है।
लालू को बचपन से मिमिक्री का शौक
लालू यादव को बचपन से मिमिक्री करना अच्छा लगता था। अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘गोपालगंज टू रायसीना, माय पॉलिटिकल जर्नी’ में वे बताते हैं कि उन्हें बेहद कम उम्र से ही मिमिक्री का शौक हो गया था। वर्तमान समय में लालू प्रसाद यादव इंडिया गठबंधन के माध्यम से पुनः भारतीय राजनीति को साधने में लगे हुए है। हालांकि इंडिया गठबंधन में बिखराव शुरू हो गया है।