झारखंड की बंजर भूमि पर होगी कांटा रहित कैक्टस की खेती

*प्रायोगिक रूप से 157 हेक्टेयर भूमि पर होगी शुरुआत ,बंजर भूमि को हरा-भरा करने के साथ कमाई का भी जरिया बनेगी योजना

**ग्रामीण विकास विभाग के तहत झारखंड स्टेट वाटरशेड मिशन के तत्वावधान में प्रमोशन ऑफ स्पाइनलेस कैक्टस प्लांटेशन एंड कल्टिवेशन पर कार्यशाला आयोजित

झारखंड : प्रदेश की बंजर भूमि को हरा-भरा करने के लिए सरकार कांटा रहित कैक्टस की खेती की ओर कदम बढ़ा रही है। ग्रामीण विकास विभाग के संयुक्त सचिव अवध नारायण प्रसाद ने कहा है कि राज्य सरकार झारखंड की कुल 68 प्रतिशत बंजर भूमि को जीवंत बनाने के साथ उसे उपयोगी और कमाई का जरिया भी बनाने की पहल कर रही है। ग्रामीण विकास विभाग के तहत झारखंड स्टेट वाटरशेड मिशन के तत्वावधान में प्रमोशन आफ स्पाइनलेस कैक्टस प्लांटेशन एंड कल्टिवेशन पर आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे।
उन्होंने कार्यशाला में वाटरशेड क्षेत्रों से आये किसानों से कहा कि वे सिर्फ जमीन दें और देखभाल की जिम्मेदारी उठाएं, विभाग उसके बाद कैक्टस की खेती की सारी जरूरतें पूरी करेगा। उन्होंने बताया कि फिलहाल विभाग राज्य की 157 हेक्टेयर भूमि पर कैक्टस की प्रायोगिक खेती की शुरुआत करने जा रहा है। खूंटी जिले में इसका प्रयोग शुरू हो गया है। केंद्र प्रायोजित इस योजना का मुख्य उद्देश्य बंजर भूमि का सतत विकास करना है। साथ ही वाटरशेड विकास, पारिस्थितिक संतुलन में सुधार, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और लोगों की आजीविका को बढ़ाना है।
कार्यशाला में बताया गया कि कांटा रहित कैक्टस की खेती से बंजर भूमि को जहां नया जीवन मिलेगा, वहीं कैक्टस से कई तरह के उत्पाद बनेंगे, जो किसानों की आय में इजाफा करेंगे। बताया गया कि कैक्टस से जैव उर्वरक, पशु चारा, खाद्य पदार्थ, जैव इंधन, कृत्रिम चमड़ा आदि का निर्माण होगा। साथ ही कैक्टस के कारण भूमि का जल संचय विकसित होगा। पर्यावरण को लाभ पहुंचेगा।
कार्यशाल में बाहर से आये विशेषज्ञ बीके झा और नेहा तिवारी ने कैक्टस प्लांटेशन के तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डाला। कैक्टस के पौधे तैयार करने से लेकर उसकी सिंचाई, देखभाल और उत्पादन की मार्केटिंग तक पर विस्तृत जानकारी दी। बताया कि कैक्टस 25 साल तक फलता-फूलता रहता है। इसकी खेती में पानी की काफी कम जरुरत पड़ती है।
कार्यशाला में ग्रामीण विकास विभाग के संयुक्त सचिव अवध नारायण प्रसाद, संयुक्त सचिव प्रमोद कुमार, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के डा. जगन्नाथ उरांव, होर्ट के वैज्ञानिक बीके झा, एनएडी-आइसीएआरडीए की डा. नेहा तिवारी आदि मौजूद थे।

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