श्रावणी मेला : एक महीने की कमाई में साल भर का गुजारा

प्रशांत झा

झारखंड : देवघर का श्रावणी मेला विश्व प्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवघर यानी बाबाधाम भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। बिहार और झारखंड भले ही दो राज्य बन गये हों, लेकिन यह मेला आज भी दोनों राज्यों को जोड़ता है। बिहार के सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से लेकर झारखंड के देवघर स्थित बाबाधाम तक 108 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में यह एशिया का सबसे लंबा मेला माना जाता है। एक महीने के मेले में 60 लाख श्रद्धालु कांवर लेकर सुल्तानगंज से बाबाधाम आते हैं और बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं। इसी के साथ देवघर से 40 किमी की दूरी पर झारखंड में ही बाबा बासुकीनाथ धर्मस्थल है। जो भी श्रद्धालु देवघर आते हैं, मान्यता के अनुसार बाबा बासुकीनाथ भी जल चढ़ाने जाते हैं। तभी उनकी यात्रा सफल मानी जाती है। यानी सुल्तानगंज-देवघर-बासुकीनाथ में पूरे एक महीने का मेला लगा रहता है। किसी भी शहर में इतने लोगों के आगमन से वहां की अर्थव्यवस्था का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। एक महीने के मेले से कई लोगों का पूरे वर्ष का गुजारा होता है। देवघर-सुल्तानगंज-बासुकीनाथ के 140 किमी के रास्ते में हजारों की संख्या में अस्थायी दुकान लगते हैं। इस एक महीने के लिए लाखों लोगों को रोदगार मिल जाता और यहां करोड़ों रुपये का कारोबार होता है।


22 जुलाई से शुरू हो रहा मेला
देवघर का श्रावणी मेला इस वर्ष 22 जुलाई से शुरू होगा। इसके लिए तैयारी शुरू हो गयी है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई विभाग ने कार्ययोजना बना ली है। जिसमें पथ निर्माण विभाग, पीएचईडी, नगर निगम, विद्युत विभाग और स्वास्थ्य विभाग मुख्य रूप से शामिल हैं। सड़कों को ठीक करना, कांवर पथ को ठीक करना, स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए अस्थाई अस्पताल, कांवर पथ पर मोटरसाइकिल एंबुलेंस, छोटे-छोटे डिस्पेंसरी, पेयजल व्यवस्था, शौचालय आदि की तैयारी शुरू हो गयी है। दोनों राज्यों की सरकारें भी मेला की तैयारी पूरी तन्मयता से करते हैं, क्योंकि सरकार को भी करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। अगर बीते वर्ष 2023 की बात की जाये तो झारखंड सरकार को केवल परिवहन व्यवस्था से लगभग 13.34 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे। इसी तरह नगर निगम द्वारा साफ-सफाई, रेलवे, मंदिर में शीघ्र दर्शन आदि के जरिए झारखंड सरकार को करोड़ों रुपये राजस्व प्राप्त होता है।

औसत दो लाख श्रद्धालु हर दिन जल चढ़ाते
श्रावणी मेला के दौरान औसत हर दिन दो लाख श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं। यानी पूरे 30 दिन में 60 लाख से अधिक श्रद्धालु सुल्तानगंज में गंगा से जल उठाते और बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते। मेला क्षेत्र में गंगाजल लेकर आने के लिए डिब्बों की सैकड़ों दुकानें खुलती हैं। शीशे के पात्र की मनाही होती है, इसलिए ये डब्बे प्लास्टिक के होते हैं। अमुमन एक श्रद्धालु दो डिब्बे में गंगाजल लेकर आते हैं। यानी वह एक जोड़ी डिब्बे खरीदते हैं। इस पवित्र पात्र की औसत कीमत 40 रुपये होती है। जिसकी साइज के अनुसार कीमत घटती-बढ़ती है। यानी 20 करोड़ रुपये का कारोबार केवल इस प्लास्टिक डब्बे को होता है। इसी तरह कांवरियों के लिए कांवर, डंडा, पहनने के लिए गंजी (बनियान), पैंट, झोला, बैठने के लिए प्लास्टिक,  आदि का करोड़ों का व्यापार होता है।

केवल एक महीने की चहल-पहल
सुल्तानगंज से देवघर के बीच 108 किमी का कांवरिया पथ का ज्यादातर हिस्सा आम आवागमन के रास्ते से अलग है। जो सावन मास के अलावा अन्य महीनों में लगभग सुनसान रहता है। एक महीने में इस पथ के किनारे के जामीन मालिकों की कमाई अच्छी हो जाती है। वह अस्थाई दुकान, रहने के लिए जगह आदि की व्यवस्था के लिए जमीन किराये पर दे देते। बड़ी संख्या में पूरे मार्ग पर तरह-तरह की खाने-पीने आदि की दुकानें लगी रहती हैं। श्रद्धालु 24 घंटे चलते इसलिए न दिन होता न रात। पूरा रास्ते में कई ऐसे दुकानदार मिल जायेंगे, जो केवल इस एक महीने की कमाई के लिए पूरे साल जमीन किराया पर ले कर रखते।

20 करोड़ का होता खाने का कारोबार
बाजार के जानकारों का कहना है कि एक व्यक्ति चाय, नाश्ता, खाना-पीना और रहने पर औसत 1,000 रुपये प्रतिदिन खर्च करता है। प्रतिदिन देवघर में औसत दो लाख श्रद्धालु आते हैं। यानी 20 करोड़ रुपया इस पर खर्च करते हैं। इसी तरह प्रसाद के लिए पेड़ा, चूड़ा, इलांयची दाना आदि का करोड़ों रुपये का कारोबार होता है।

पंडा-पुजारी को भी मेला का रहता इंतजार
श्रावणी मेला का इंतजार पंडा-पुजारियों को रहता है। सुल्तानगंज और देवघर दोनों जगह श्रद्धालुओं को संकल्प औऱ पूजा आदि कराया जाता। इसी तरह अस्थाई वाहन पार्किंग स्थल, अस्थाई खिलौना दुकान, कपड़े, लोहे के बर्तन आदि सामानों के दुकान लगते हैं। उत्तर प्रदेश, बंगाल और अन्य राज्यों से लोग एक महीने के लिए यहां विभिन्न तरह की दुकान लगाते। सुल्तानगंज से लेकर देवघर तक फोटोग्राफर भरे होते हैं। जो 20 रुपये से लेकर 150 रुपये तक में (साइज के अनुसार) फोटो खींच कर तत्काल उपलब्ध कराते हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह देखने में बहुत छोटा समूह लगता है, लेकिन इससे लगभग 20 से 25 हजार लोग जुड़े होते हैं। यह करोड़ों रुपये का कारोबार है। इसमें कई ऐसे अस्थाई कारोबारी होते हैं, जिनके पूरे साल की कमाई होती है। इसी कमाई से पूरे साल गुजारा कर लेते हैं। वहीं स्थायी दुकानदारों के पूरे साल की मुख्य कमाई रहती है। अगर सुल्तानगंज-देवघर-बासुकीनाथ के सावन मेले के एक महीने के सभी तरह के कारोबारों को जोड़ दें, तो यह अरबों में पहुंच जाएगा। 

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