नई दिल्ली/जयपुर। विश्व मरुस्थलीकरण पर सूखे और पर्यावरण से निपटने के लिए आवश्यक सहयोग के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने का दिवस मनाया जाता है। यह दिवस बंजर भूमि को स्वस्थ भूमि में बदलने पर केंद्रित है। मुझे शब्दों के मुताबिक विशेषज्ञ बताते हैं कि भूमि बहाली आर्थिक सुधार में बहुत योगदान दे सकती है। भूमि बहाली में निवेश करने से रोजगार और आर्थिक लाभ भी हो सकता है।
विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने का दिवस एक अनूठा आयोजन है जो दुनिया के लोगों को याद दिलाता है कि भूमि क्षरण तटस्थता तभी हासिल की जा सकती है जब सभी स्तरों पर सहयोग हो, समुदाय की मजबूत भागीदारी हो और समस्या का समाधान हो। यह दिन टिकाऊ भूमि प्रबंधन पर देशों द्वारा की गई प्रगति का भी जश्न मनाता है और दुनिया में क्या किया जाना चाहिए ताकि भूमि क्षरण तटस्थता गरीबी में कमी, भोजन, जल सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, शमन और अनुकूलन के लिए एक ठोस आधार प्रदान करे। मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है। मुख्य रूप से, यह मानवीय गतिविधियों और फिर जलवायु परिवर्तनों के कारण होता है। इसका मतलब मौजूदा रेगिस्तानों का विस्तार नहीं है, बल्कि यह शुष्क भूमि पारिस्थितिकी तंत्र, वनों की कटाई, अतिचारण, खराब सिंचाई प्रथाओं आदि के कारण होता है, जो भूमि की उत्पादकता को प्रभावित करता है।
इस विश्व मरुस्थलीकरण दिवस पर मध्यकाल के महान पर्यावरण चिंतक जसनाथ की अवतरण स्थली डाबला तालाब में प्रदेश के विभिन्न रेगिस्तानी ज़िलों से जसनाथी सिद्ध अनुयायी एकत्र हुए और भूमि संवाद में हिस्सा लिया। देव जसनाथ संस्थागत वन मंडल अध्यक्ष बहादुर मल सिद्ध ने बताया कि प्रोफ़ेसर श्याम सुंदर ज्याणी के मार्गदर्शन में डाबला तालाब भूमि पर 11 लघु तालाबों का निर्माण किया जा रहा है आज निर्जला एकादशी पर तीन तालाब तैयार कर पानी से भर दिए गए एवं शेष तालाब एक सप्ताह में पानी से लबालब होंगे। तालाबों के चारों ओर विशेष तरह से पौधारोपण किया जाएगा जिसकी शुरुआत भी आज की गई ।
इस अवसर पर आयोजित भूमि संवाद व लैंड वाक में जसनाथी समाज के बुजुर्गों की अगुवाई में युवाओं ने उत्साह से भाग लिया। प्रोफ़ेसर ज्याणी ने बताया कि रुँख रीत को मज़बूती प्रदान करते हुए सभी भागीदारों ने सहकार पर्यावरणवाद की बुलंदी में अपना-अपना योगदान दिया। जलवायु परिवर्तन व भू उपयोग में बदलाव के कारण बनी विषम चुनौतियों का मुक़ाबला केवल सहकार के पर्यावरणीय विमर्श से ही संभव है क्योंकि सहकार से ही समुदाय एक साथ आकर सामाजिक स्तर पर चुनौतियों का मुक़ाबला कर सकता है यही जसनाथ जी की शिक्षाओं का मूल है जिसका मूर्त स्वरूप डाबला तालाब है जहाँ वन्य जीवों की तादाद इतनी बढ़ गई है कि लघु तालाबों का जाल बिछाने की ज़रूरत आन पड़ी है। इस मुद्दे के बारे में जन जागरूकता बढ़ाई जा सके और विशेष रूप से उन क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के कार्यान्वयन के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके, जो गंभीर सूखे या मरुस्थलीकरण का सामना कर रहे हैं। ये लघु तालाब हमारे संस्थागत वनों की तरह ही आने वाले वक्त के लघु पारिस्थितिकी तंत्र होंगे। इस अवसर पर सामूहिक रूप से राबड़ी का सेवन कर देसज भोजन की महता का नारा बुलंद किया गया।