नई दिल्ली, 05 सितंबर: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने असम के बारपेटा जिले के विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किए गए 28 बंगाली भाषी मुसलमानों को हिरासत में लिए जाने कड़ी निंदा करते हुए कहा कि ‘अवैध’ और ‘संदिग्ध मतदाता’ करार देने की ऐसी कार्रवाई मुस्लिम समुदाय के लिए अपमानजनक और अमानवीय से कम नहीं है।
“हम बारपेटा जिले के 28 बंगाली भाषी मुसलमानों के साथ किए गए अन्यायपूर्ण व्यवहार की कड़ी निंदा करते हैं, जिन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया है और ट्रांजिट कैंपों में भेज दिया गया है। यह उनके मौलिक मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है तथा कानून के चयनात्मक प्रयोग का मामला है। उनमें से अधिकांश अशिक्षित, गरीबी से त्रस्त तथा हाशिए पर पड़े वर्ग हैं। उन्हें अपने विरुद्ध मामलों की जानकारी भी नहीं थी और विदेशी न्यायाधिकरण में उन्हें उचित कानूनी प्रतिनिधित्व भी नहीं मिला, जिसके कारण अंततः उन्हें अमानवीय हिरासत में रखा गया।
मोतसिम खान ने ‘विदेशी ट्रिब्यूनल’ की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इसके निर्णयों को व्यापक रूप से मनमाना और राजनीति से प्रेरित माना जाता है।“वर्तमान स्थिति मुस्लिम समुदाय, विशेषकर मियां मुसलमानों को असंगत रूप से निशाना बनाए जाने को दर्शाती है। इसके अलावा, असम एनआरसी प्रक्रिया से पता चला कि विदेशियों के रूप में पहचाने गए लोगों में से दो-तिहाई हिंदू और लगभग एक-तिहाई मुसलमान थे। लेकिन इन कानूनों को लागू करते समय, विशेष रूप से प्रवर्तन में, मुसलमानों को असंगत रूप से निशाना बनाया जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में मुसलमानों को अन्यायपूर्ण उत्पीड़न और हिरासत में लिया गया है,”।
मीडिया को जारी एक बयान में उन्होंने कहा, ‘‘ट्रिब्यूनल ने ऐसे आदेश पारित किए हैं जो स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि ये लोगों को दिए गए स्थापित कानूनी अधिकारों और सुरक्षा का उल्लंघन हैं। हम सभी 28 व्यक्तियों की तत्काल रिहाई और विदेशी ट्रिब्यूनल के समक्ष सभी कार्यवाहियों पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हैं। यह कानून की उचित प्रक्रिया नहीं है और भारत के न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ है।’’
मोतसिम खान ने कहा, “जमाअत-ए-इस्लामी हिंद गलत तरीके से एनआरसी कार्यान्वयन द्वारा प्रभावित लोगों के साथ खड़ा है और पीड़ितों को कानूनी और नैतिक रूप से समर्थन देगा। जमाअत नागरिक समाज, मुख्यधारा के मीडिया और देश भर के मीडिया से आह्वान करती है कि वे इस मुद्दे के बारे में लोगों को जागरूक करें और इसे राष्ट्रीय चर्चा में लाएं। हम मांग करते हैं कि सरकार इन कदमों की तुरंत समीक्षा करे और यह सुनिश्चित करे कि किसी भी मूल नागरिक को विदेशी न करार दिया जाए और उसे हिरासत में लेकर परेशान न किया जाए। प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, पंथ या धर्म का हो।“