नई दिल्ली:भारत में जनगणना 1951 से प्रत्येक दस वर्ष पर नियमित रूप से होती रही है, लेकिन 2021 की जनगणना कोरोना महामारी के कारण स्थगित हो गई थी। जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीतियां बनाने और देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विपक्षी कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे, ताकि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सहित सभी जातियों की वास्तविक संख्या का पता चल सके।
केंद्र सरकार ने अब इस मांग को स्वीकार करते हुए आगामी जनगणना में जातिगत गणना शामिल करने का बड़ा फैसला लिया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक के बाद बताया कि राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने जातिगत जनगणना को आगामी जनगणना में शामिल करने का निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने इस मुद्दे को केवल राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। स्वतंत्र भारत में आज तक जाति को जनगणना की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया था। वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जातिगत जनगणना को कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा। इसके बाद एक मंत्रीमंडल समूह का गठन किया गया, जिसमें अधिकांश राजनीतिक दलों ने जातिगत जनगणना की सिफारिश की, लेकिन कांग्रेस ने इसे केवल एक सर्वे तक सीमित रखा।
केंद्रीय मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि जातिगत जनगणना संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची के अंतर्गत आती है, इसलिए यह केंद्र सरकार का विषय है। कुछ राज्यों ने जाति आधारित सर्वेक्षण किए हैं, लेकिन राजनीतिक कारणों से वे पारदर्शी नहीं रहे और इससे समाज में भ्रांतियां फैली हैं।
उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना के लिए एक समुचित मंच तैयार करना आवश्यक है ताकि सामाजिक ताने-बाने को राजनीति के दबाव से मुक्त रखा जा सके। इससे न केवल समाज आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त होगा, बल्कि देश का विकास भी निरंतर जारी रहेगा।
इस ऐतिहासिक निर्णय से उम्मीद की जा रही है कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल होने से सामाजिक न्याय और संसाधनों के उचित वितरण में सुधार होगा तथा देश के विभिन्न वर्गों की वास्तविक स्थिति का पता चलेगा।