लोकसभा चुनाव से पहले वित्त मंत्रालय का बैंकों को निर्देश, 60 प्रतिशत कारोबार के बैंक लोन माफ

*आम आदमी के लिए टैक्स का बोझ के अलावा कुछ नहीं

नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय सरकार की नीतियों से कारपोरेट जगत और व्यवसायियों का बल्ले बल्ले 60% बैंक ऋण माफ, लेकिन आप आदमियों का पल्ला खाली उनको झेलना पड़ेगा टैक्स का बोझ | अब तक, बैंक ऋण नहीं चुकाने पर डर में रहना या देश से भाग जाना ही नियति थी। विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी जैसे कर्ज में डूबे उद्योगपतियों के लिए मोदी सरकार नई सुविधाएं लेकर आई है ! कॉरपोरेट जगत के इस तरह के व्यवसायि अब अपराधी नहीं हैं, भले ही वे बैंक ऋण पर चूक करते हों। बल्कि उन्हें छूट के लिए दिए गए कुल कर्ज का कम से कम 40 फीसदी सेटलमेंट करने का मौका दिया जाएगा | वित्त मंत्रालय की ओर से बैंकों को ऐसे दिशानिर्देश दिए गए हैं और फिर सरकारी बैंक इस नीति के साथ व्यवसायियों के साथ डील करने पर जुट गए। हालांकि आम आदमियों के लिए सरकार के तरफ से बैंकों को कोई भी दिशानिर्देश नहीं है, ऐसे में मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के लिए ऋण का बोझ कम करने की कोई संभावना नहीं है | 

लेकिन ऐसा सिद्धांत सरकार ने लिया क्यों ? वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, सीधे शब्दों में कहें तो बैंकों के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट का बोझ कम करने का ये है मोदी सरकार का नया फॉर्मूला ! ऐसे कई बिजनेसमैन और उद्योगपति हैं जो बैंकों से लोन लेते हैं और लंबे समय तक नहीं चुकाते। इनमें से नीरव मोदी, विजय माल्या, मेहुल चोकसि जैसे कुछ ही नाम सामने आए हैं | क्योंकि, उन्होंने सरकारी बैंक से भारी पैसा उधार लिया और बिना उधार चुकता करें विदेश भाग गए। लेकिन देशभर में ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जिन्होंने बैंक लोन नहीं चुकाया है। कुछ ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया है और बैंक लंबे समय से उनके साथ मुकदमेबाजी और कानूनी दांव-पेच में लगे रहे। हालाँकि, इससे वर्षों तक आम लोगों द्वारा जमा किए धन का आमिर आदमियों द्वारा उपभोग नहीं रुका। बाद में सरकारी प्रक्रिया द्वारा बजट के समय नहीं वसूली गई बैंक लोन का राइट-ऑफ करना पड़ता है | इसलिए उद्योगपतियों के ऋण माफ करके बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के भारी बोझ को कम करने की प्रक्रिया शुरू की गई। इस बार वित्त मंत्रालय की ओर से इसके लिए शानदार रियायतें दी जा रही हैं | 

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एक नया लक्ष्य दिया गया है- बकाया ऋण का कम से कम 40 प्रतिशत जल्द से जल्द वसूल करना। तब कम से कम गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की दर को कम किया जा सकता है। बातचीत के जरिए 40 प्रतिशत रिटर्न बिल्कुल भी न मिलने से कहीं बेहतर है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, बैंकों के सामूहिक खातों में 7.5 लाख करोड़ रुपये के अवैतनिक ऋण का पहाड़ जमा हो गया है और उसमें से 2022 तक सिर्फ 1 लाख 30 हजार करोड़ ही जुटाए जा सके हैं | यानी 6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा अभी भी बकाया है | सरकार इसमें से कम से कम 40 प्रतिशत वापस पाकर खुश होगा ऐसा ही सरकारी निर्देश में आभास दिया गया है। इसलिए इस संबंध में नई पहल करने का निर्णय लिया गया है। नीति उन उद्योगपतियों, व्यापारियों, कॉरपोरेट्स की सूची के आधार पर तय की जाएगी जो किसी न किसी कारण से बैंकों से लिया गया ऋण चुकाने में असमर्थ हैं। यानी जानबूझ कर कर्ज न चुकाने या कर्ज न चुकाने वालों के लिए एक नियम। और आवेदन का सत्यापन करने के बाद यह देखा जाएगा कि जो लोग अयोग्य हैं उनके लिए अलग से कोई नीति है या नहीं।

इस नियम के मुताबिक, अगर शुरुआती प्रक्रिया में बैंक समझ पाते हैं की किसी भी तरह से ब्याज सहित कर्ज चुकाने की संभावना नहीं है, तो सालों तक लक्ष्य पर बैठे रहने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय 60 प्रतिशत माफ कर दिया जाए। बकाया राशि का 40 फीसदी हिस्सा वसूली के लिए भेजा जाएगा। इस फैसले से साफ है कि सरकार डिफॉल्टर इंडस्ट्री को दोषी ठहराने की बजाय मदद का हाथ बढ़ा रही है | लेकिन अभी तक सरकार ने आम आदमियों के लिए कुछ भी दिशानिर्देश बैंकों को भेजा नहीं है, इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि आम आदमी पर कर्ज का बोझ पर कोई माफी नहीं होगा |

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