कोयला मंत्रालय के तहत कोयला एवं लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा एक अनूठी पहल
भले ही अपने उपभोक्ताओं के लिए कोयला/ लिग्नाइट का उत्पादन और वितरण करने का ही शासनादेश हो, फिर भी कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में कोयला और लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) ने लीक से हटकर ओवरबर्डन से बहुत कम कीमत पर रेत का उत्पादन करने वाली एक अनोखी पहल की है। इस पहल से न केवल ओवरबर्डन के कारण रेत गाद से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिल रही है, बल्कि निर्माण के लिए सस्ती रेत प्राप्त करने का विकल्प भी मिल रहा है। कोयला सार्वजनिक उपक्रमों में रेत का उत्पादन पहले ही शुरू हो चुका है और अगले पांच वर्षों के दौरान कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), नैवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएलसीआईएल) और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) में रेत के उत्पादन को अधिकतम करने के लिए रोडमैप तैयार किया जा चुका है।
कोयले का निष्कर्षण एक महत्वपूर्ण उप-उत्पाद के साथ होता है, जिसे ओवरबर्डन के नाम से जाना जाता है। कोयले के खुले खनन के दौरान, कोयले की परत के ऊपर स्थित परत को ओवरबर्डन के रूप में जाना जाता है, जिसमें प्रचुर मात्रा में सिलिका सामग्री के साथ मिट्टी, जलोढ़ रेत और बलुआ पत्थर शामिल होते हैं। नीचे से कोयला निकालने के लिए ओवरबर्डन को हटा दिया जाता है। बाद में, कोयला निष्कर्षण पूरा होने पर, भूमि को उसका मूल आकार प्रदान करने के लिए ओवरबर्डन का उपयोग बैकफिलिंग के लिए किया जाता है। ऊपर से ओवरबर्डन निकालते समय, मात्रा का स्वेल फैक्टर 20-25 प्रतिशत होता है। इस ओवरबर्डन को परंपरागत रूप से अपशिष्ट या बोझ माना जाता है और अक्सर इसके संभावित मूल्य को पहचाने बिना इसे ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। हालांकि, सतत् अभ्यास और सर्कुलर इकोनॉमी पर बढ़ते फोकस के साथ, ओवरबर्डन के लिए वैकल्पिक उपयोग की खोज करने और इसे कचरे से कंचन में बदलने की दिशा में बदलाव आया है।
प्रथम पहल
इस तरह के रूपांतरण की पहली व्यावसायिक पहल सीआईएल की सहायक कंपनी वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (डब्ल्यूसीएल) ने 2016-17 के दौरान अपनी खदान में की थी। महाराष्ट्र के नागपुर जिले के भानेगांव खदान में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, जहां विभाग की ओर से स्थापित की गई मशीनों के जरिए रेत निकाली जाती थी। इस मशीन की क्षमता 300 घन मीटर प्रतिदिन थी। निकाली गई रेत का गहन परीक्षण किया गया और अंततः उसे नदी तल से मिलने वाली रेत से बेहतर पाया गया। इसकी कीमत लगभग 160 रुपये प्रति घन मीटर थी, जो बाजार की तत्कालीन कीमत का लगभग 10 प्रतिशत थी। यह रेत प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत कम लागत वाले घर बनाने के लिए नागपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट को दी गई थी। इसके अलावा दो और विभागीय पहल भी शुरू की गई।
पायलट परियोजनाओं की सफलता पर, डब्ल्यूसीएल ने नागपुर के पास गोंडेगांव खदान में देश के सबसे बड़े रेत उत्पादन संयंत्र को चालू करके रेत का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया। यह इकाई बाजार मूल्य से लगभग आधी कीमत पर प्रतिदिन 2500 घन मीटर रेत का उत्पादन करती है।
सरकारी इकाइयों के साथ साझेदारी और स्थानीय बिक्री
नागपुर के सबसे बड़े रेत उत्पादक संयंत्र से उत्पादित रेत का बड़ा हिस्सा बाजार मूल्य के एक तिहाई पर एनएचएआई, एमओआईएल, महा जेनको जैसी सरकारी इकाइयों और अन्य छोटी इकाइयों को दिया जा रहा है। बाकी रेत को बाजार में खुली नीलामी के माध्यम से बेचा जा रहा है, जिससे स्थानीय लोगों को काफी सस्ती कीमत पर रेत मिल रही है।
कचरे से कंचन: एक आदर्श बदलाव
ओवरबर्डन, जिसे कभी अपशिष्ट या बेकार पदार्थ समझा जाता था, अब उसे एक मूल्यवान संसाधन माना जा रहा है। रेत प्रसंस्करण इकाइयां भी जबरदस्त रोजगार के अवसर पैदा कर रही हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में स्थानीय आबादी न केवल उत्पादन इकाई में, बल्कि ट्रकों के माध्यम से उपभोक्ताओं तक रेत को ले जाने के लिए उसकी लोडिंग और आपूर्ति जैसी कार्यों में शामिल हो रही है।
विस्तार की योजनाएं और समाज पर प्रभाव
इस सकारात्मक दृष्टिकोण और ओवरबर्डन के वैकल्पिक उपयोग की खोज के एक भाग के रूप में, सीआईएल ने देश के पूर्वी और मध्य भाग में अपनी सहायक कंपनियों में कई ओवरबर्डन प्रसंस्करण संयंत्र और रेत उत्पादन संयंत्र चालू किए हैं।
इस स्थायी प्रयास के हिस्से के रूप में, कोयला सार्वजनिक उपक्रम में ओवरबर्डन से नौ रेत उत्पादन/ प्रसंस्करण संयंत्र पहले से ही उत्पादन में हैं, जिनमें से चार एससीसीएल में, तीन डब्ल्यूसीएल में और एक-एक एनसीएल और ईसीएल में हैं। इन रेत उत्पादन/ प्रसंस्करण संयंत्रों की कुल वार्षिक क्षमता लगभग 5.5 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष है। इसके अलावा, सीआईएल की विभिन्न सहायक कंपनियों में ओवरबर्डन से रेत उत्पादक चार संयंत्र निविदा के विभिन्न चरणों में हैं। लिग्नाइट उत्पादक कंपनी एनएलसीआईएल भी दो रेत उत्पादक संयंत्र लगा रही है। इन सभी नए आगामी संयंत्रों की कुल वार्षिक रेत उत्पादन क्षमता लगभग 1.5 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष होगी।
भविष्य का मार्ग
अग्रणी पहलों के माध्यम से, कोयला/ लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रम रेत उत्पादन और खपत के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण का नेतृत्व कर रहे हैं, जो पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक कल्याण में योगदान दे रहा है। कोयला मंत्रालय किफायती मूल्य पर ओवरबर्डन से और भी अधिक मात्रा में रेत का उत्पादन करने के लिए कोयला/ लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रम को लीक से हटकर इस पहल को शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
अगले कुछ वर्षों में, प्रौद्योगिकी की प्रगति और हमारे देश में विभिन्न स्थानों में भारी मात्रा में होने वाले रेत उत्पादन के साथ, रेत के प्रति घन मीटर कीमत में काफी कमी आएगी, जिससे आम आदमी को निर्माण उद्देश्य के लिए सस्ती रेत उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे नदी तल की रेत के इस्तेमाल को भी कम करने में मदद मिलेगी, जो बदले में पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होगा।