हजूर साहिब : सिखों के ५ तखतों में से एक है। यह नान्देड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है । यहीं पर सन् 1708 में सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी। सन् 1708 से पहले गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म प्रचार के लिए कुछ वर्षों के लिए यहाँ अपने कुछ अनुयायियों के साथ अपना पड़ाव डाला था।
यहीं पर कुछ धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी भेजकर उनकी हत्या करवा दी थी।
अपनी मृत्यु को समीप देखकर गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाये, सभी सिखों को आदेश दिया की मेरे बाद आप सभी पवित्र ग्रन्थ को ही गुरु मानें, और तभी से पवित्र ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा जाता है. गुरु गोबिंद सिंह जी के ही शब्दों में: “आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ, सब सीखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रन्थ ,गुरु गोविंद सिंह जी के ही शब्दों में:
आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ, सब सीखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रन्थ।।
परिसर में स्थित गुरूद्वारे को सचखंड (सत्य का क्षेत्र) नाम से जाना जाता है, यह गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी जहां ज्योति जोत समाये थे उसी स्थान पर ही बनाया गया है।
गुरुद्वारे का आतंरिक कक्ष अंगीठा साहिब कहलाता है, यह ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है जहां गुरु गोविंद सिंह जी का दाह संस्कार किया गया था।
तख़्त के गर्भ गृह में गुरुद्वारा पटना साहिब की तर्ज़ पर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब तथा श्री दश्म ग्रन्थ दोनों स्थापित हैं। गुरुद्वारे का निर्माण पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी के द्वारा करवाया गया था।
गुरु गोविंद सिंह जी की यह अभिलाषा थी कि उनके निर्वाण के बाद भी उनके सहयोगियों में से एक श्री संतोख सिंह जी (जो कि उस समय उनके सामुदायिक रसोईघर की देख-रेख करते थे), नांदेड़ में ही रहें तथा गुरु का लंगर (भोजन) को निरंतर चलाये तथा बंद न होने दें।