झारखंड के चांडिल डैम से स्वर्णरेखा नदी में जल प्रवाह करने की मांग विधायक ने की

*विभाग को बताए नियम, कहा – डैम में संचित जल भंडार में से न्यूनतम 5 प्रतिशत जल का पर्यावरणीय प्रवाह नीचे छोड़े जाने का वैधानिक प्रावधान है

झारखंड : पूर्वी सिंहभूम जिला ,जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा के निर्दलीय विधायक सरजू राय ने अपने क्षेत्र के लोगों के लिए जल संसाधन विभाग झारखंड के सचिव को पत्र लिखकर स्वर्णरेखा नदी में संचित जल से जल प्रवाह छोड़ने की मांग की है । साथी उन्होंने विभागीय सचिव को राष्ट्रीय जल नीति 2002 और इसके पूर्व राष्ट्रीय जल नीति 1987 की अनुरोध नदियों पर बनाए गए जल भंडारों के उपयोग की प्राथमिकता पेयजल के संबंध में बताया है।
श्री राय ने विभाग को बताया है कि मोहरदा पेयजल आपूर्ति परियोजना स्वर्णरेखा नदी के जल पर आधारित है। समय के साथ परियोजना में पेयजल की मांग बढ़ते जा रही है। दूसरी ओर स्वर्णरेखा नदी में चांडिल डैम के नीचे जल प्रवाह में निरंतर कमी आते जा रही है। चांडिल डैम के जल बहिस्त्राव का उपयोग केवल पेयजल के लिए ही नहीं बल्कि औद्योगिक उपयोग में भी होता है ।पूर्वी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां जिला के कई उद्योग स्वर्णरेखा नदी के जल पर आधारित हंै।

उल्लेखनीय है कि गत वर्ष मई के महीने में स्वर्णरेखा नदी में जल प्रवाह कम हो जाने के कारण तथा खरकई और स्वर्णरेखा के संगम (दोमुहानी) के नीचे जमशेदपुर एवं मानगो के नालों से दूषित जल-मल बहिस्त्राव होने के कारण स्वर्णरेखा नदी के निचले इलाकों में प्रदूषित जल की मात्रा काफी बढ़ गयी थी। मोहरदा पेयजल आपूर्ति के लिए जहाँ से स्वर्णरेखा का जल खींचा जाता है, वहाँ जल प्रवाह कम हो जाने के कारण प्रवाह में स्थिरता आ गई थी, जिस कारण मोहरदा जलापूर्ति के लिए नदी से जल खींचे जाने वाले क्षेत्र में लाल रंग के छोटे छोटे कीड़े पैदा हो गये थे। ये कीड़े मोहरदा पेयजल पिरयोजना के माध्यम से उपभोक्ताओं के इलाके के एक बड़े इलाके के घरों में पहुँच जा रहे थे। जुलोजिकल सर्वे आॅफ इंडिया के विशेषज्ञों के सलाह की उपरांत मैंने जल संसाधन विभाग झारखंड सरकार से, स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के मुख्य अभियंता, चांडिल से तथा पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त से आग्रह किया कि वे चांडिल डैम से पानी की अतिरिक्त मात्रा छोड़वाना सुनिश्चित करें ताकि ये कीड़े नदी से प्रवाहित होकर निकल जाएं और मोहरदा जलापूर्ति के माध्यम से घरों तक नहीं जाय। मुझे प्रसन्नता है कि मेरे आग्रह पर उस अवधि में चांडिल डैम से जलप्रवाह बढ़ाया गया और जनस्वास्थ्य के इस समस्या का समाधान हुआ।

इस वर्ष तो फरवरी महीने के दूसरे सप्ताह से ही स्वर्णरेखा के जल प्रवाह में दोमुहानी के नीचे काफी कमी आ गयी है जिसके कारण नदी जल में प्रदूषण की मात्रा बढ़ गयी है। इसके कारण खरकई-स्वर्णरेखा संगम स्थल दोमुहानी से नीचे नदी का पानी पीने योग्य एवं स्नान करने योग्य नहीं रह गया है। आपको मालूम है कि राष्ट्रीय जल नीति- 2002 के अनुसार और इसके पूर्व राष्ट्रीय जल नीति- 1987 के अनुसार नदियों पर बनाए गए जल भंडारों के उपयोग की पहली प्राथमिकता पेयजल की है। रब्बी का मौसम समाप्त होने की कगार पर है। फलतः सिंचाई के लिए जल का उपयोग की आवश्यकता नहीं के बराबर है। ऐसी स्थिति में मोहरदा जलापूर्ति परियोजना से स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि चांडिल डैम में संचित जल भंडार में से माॅनसून आने तक पर्याप्त पानी छोड़ा जाय ताकि नदी के पेयजल में रिहायशी इलाकों से होने वाले जल-मल प्रवाह के कारण जल प्रदूषण में कमी हो एवं नदी जल में स्थिर हो जाने वाले घर बनाने वाले कीड़े-मकोड़े प्रवाहित हो जाएं। ऐसे भी किसी डैम में संचित जल भंडार में से न्यूनतम 5 प्रतिशत जल का पर्यावरणीय प्रवाह नीचे छोड़े जाने का वैधानिक प्रावधान है, ताकि नदी का जलप्रवाह निरंतर बना रहे और नदी की पारिस्थितिकी पर न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
इस लिए चांडिल डैम से आवश्यक मात्रा में जल प्रवाह नियमित रूप से माॅनसून आने तक छोड़ने का आदेश शीघ्र देंगे ताकि मोहरदा पेयजल आपूर्ति परियोजना स्वच्छ पेयजल आपूर्ति उपभोक्ताओं को देना सुनिश्चित हो सके।

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