नई दिल्ली : 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही, देशभर में चुनावी जज्बा बढ़ा है। राम मंदिर के मुद्दे ने भारतीय राजनीति में नए मोड़ को तैयार किया है, जिसका सीधा असर 2024 के चुनाव पर होने की उम्मीद है। विपक्ष ने भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए भाजपा के ही पिच पर खेल रही है। वह अपने सुविधा अनुसार भगवान भी चुन रहे हैं और उन्हें प्रमोट कर रहे हैं।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी काली माता को, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री हनुमान जी को अपना आराध्य बनाकर वर्ष 2024 के चुनावी वैतरणी को पर करने में लगे हुए हैं। वहीं कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों भी विभिन्न देवताओं देवियों के दरबार में जाकर हाजिरी लगा रहे हैं।
जिसमें राहुल गांधी की कथित शिव भक्ति की चर्चा जोरों पर है।इस बार चुनावी परियोजना में, राम मंदिर बनाने के मुद्दे ने सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को ही नहीं बल्कि अन्य राजनीतिक दलों को भी अपने-अपने भगवानों को चुनने की बात करने पर मजबूर किया है। ममता बनर्जी का काली देवी की पूजा ।
अरविंद केजरीवाल का सुंदरकांड का पाठ, और समाजवादी पार्टी का राग अलापना, सब इस नए धाराप्रवाह में शामिल हो रहे हैं।
राम मंदिर के मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी ने एक बड़े रामोत्सव के रूप में पेश किया है, जिससे हर व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर भाजपा को एक साफ्ट कार्नर माना जा रहा है। इसमें विश्लेषण करते हुए, यह दिखता है कि राम मंदिर के मुद्दे ने हिन्दू वोटर्स के मन में भाजपा को सशक्त करने का काम किया है। विपक्षी दलों को इस माहौल में वोट प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
इसी कड़ी में, भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को एक उन्नत नेता के रूप में प्रस्तुत किया है और उसे विक्रमादित्य के साथ तुलना किया जा रहा है। विपक्षी दलों को हिन्दू वोटर्स को आकर्षित करने के लिए नए रणनीतिक रूपों की आवश्यकता है, वरना यह मुद्दा भाजपा के साथी बनाए रखने में उनकी कठिनाई बढ़ा सकता है।
चुनावी माहौल की उम्मीद है कि यह राम मंदिर के मुद्दे का असर सीधे 2024 के चुनाव पर होगा और यह देखने को मिलेगा कि कैसे यह नया रूप देश की राजनीति को रूपांतरित करता है।