आज भारतीय राजनीति में दो ध्रुवीय व्यवस्था बनने की प्रक्रिया प्रारंभ है. एक तरफ बेंगलुरु में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों का गठबंधन बनाने की कवायद है और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के रजत जयंती वर्ष में दिल्ली में बैठक होने वाली है. एक तरफ कांग्रेस है जिसका नेतृत्व 1998 में मध्य प्रदेश के पंचमढ़ी के अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर रहा था कि क्षेत्रीय और छोटे दल भारतीय लोकतंत्र, संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा हैं ऐसे में भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का बढ़ना राष्ट्रीय हित में नहीं है. उसी समय अटल बिहारी के नेतृत्व में NDA का गठन हुआ. अटल बिहारी नेतृत्व वाली सरकार इस देश की पहली सरकार थी जिसे अपना कार्यकाल पूरा करने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
यह भारतीय लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली में 1960 के दशक में पंडित दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. राम मनोहर लोहिया इनके नेतृत्व में बने विपक्षी गठबंधन के शिल्प पर खड़ा सत्ता का सेवा महल था. इसी का परिणाम था कि अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भारत ने यह कल्पना प्रारम्भ की कि भारतीय अर्थव्यवस्था 10 फीसदी के दर से वृद्दि कर सकती है. दो दशकों से जिस परमाणु परिक्षण को लेकर हम संकोच में थे उस संकोच को तोड़कर भारत ने परमाणु शक्ति की प्रदाता को वैश्विक किया गया. और जिस गठबंधन के बूते अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पांच वर्ष पूरे किये थे उस गठबंधन की सरकार का अगला संस्करण था नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाला 2014 का गठबंधन. जब इस देश के इतिहास में पहली बार हुआ कि पूर्ण बहुमत प्राप्त दल ने अपने चुनाव पूर्व गठबंधन के सहयोगियों को अपने मंत्रिमंडल में सम्मान के साथ यथा योग्य विभागों से सम्मानित किया. जबकी 2007 में कांग्रेस की नेतृत्व वाली UPA सरकार परमाणु करार अमेरिका से करने की पूर्ण संध्या पर पहुंचा तब तालकटोरा में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में प्रस्ताव पारित हुआ कि क्षेत्रीय दलों की बजाये कांग्रेस को “एकला चलो रे” नारे को साकार करना चाहिए. यह “एकला चलो रे” नारा इंदिरा गांधी ने 1971 से दे रखा था. कांग्रेस यही बात 1998 में कह रही थी और गठबंधन की सत्ता से 3 वर्ष बीतने के बाद कांग्रेस ने DMK को पूरी तरह से राजीव गांधी के हत्यारों का समर्थक कहा कर उनके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया. सनद रहे कि 1998 में आरोप में इन्दर कुमार गुजराल की सरकार को कांग्रेस ने गिरा दी थी. तब मिलब चंद आयोग की रिपोर्ट में राजीव गांधी हत्या में DMK की वैचारिक भूमिका को सामने लाया गया था. वही कांग्रेस 2004 में जब सत्ता की प्राप्ति की बात आई तो सोनिया गांधी ने अपने कांग्रेस के सेक्युलर तरणताल में DMK को हत्या के अपराधों से मुक्ति कर दिया. कांग्रेस के तरणताल में स्नान करते ही राजीव गांधी की हत्या के आरोपों से पवित्र होकर करूणानिधि डॉ मनमोहन सिंह के सरकार के अंग बन गए. सनद रहे कि इसी कार्यकाल में डॉ मनमोहन सिंह ने मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी को भी साथ में साधा. जिन मुलायम सिंह यादव ने 1999 में प्रधानमंत्री बनने के सोनिया गांधी के सपनों को चकनाचूर किया था और जिसके कारण मुलायम सिंह यादव परिवार और अमर सिंह के खिलाफ कांग्रेसी पद अधिकारियों ने बेहिसाब संपत्ति का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में दायर कर रखा था और उस मुक़दमे में CBI जांच के आदेश के आधार पर 2008 में मुलायम सिंह यादव के सांसदों का समर्थन लेकर डॉ मनमोहन सिंह की सरकार बचाई गई थी. उस समय जिस तरह से संसद में नोट उड़ाया गया था यह भारतीय संसदीय परंपरा के कलंक का सोपान था. कालांतर में शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जब अपने ही निजी सचिव शशिकांत पांडे की हत्या कांड में सजायाफ्ता हुए तो सजायाफ्ता होने के बाद भी डॉ मनमोहन सिंह ने उन्हें मंत्री बनाकर भारतीय लोकतंत्र की परंपरा को कैसे कलंकित किया इस का उत्तर किसी के पास नहीं है.
आज तो स्वयं कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री पद के भावी प्रत्याशी राहुल गांधी जिन्हें कांग्रेस पार्टी द्वारा जन्मना प्रधानमंत्री पद का पात्र मान लिया गया वे भी सजायाफ्ता है. उनके गठबंधन में बियाह कराने के अगुआ लालू प्रसाद यादव चारा चोरी के मामले में सजायाफ्ता हैं. लेकिन यह सब तरणताल में नहाकर पवित्र हुए पड़े हैं और भाजपा के सहयोगियों पर आरोप उछाल कर कांग्रेसी समझ रहे हैं इस देश की जनता जमानत पर घूम रहीं सोनिया गांधी के अभियोग से अनभिज्ञ है. जो राहुल गांधी 10 मामलों में मुक़दमे झेल रहे हो और एक गालीबाजी के मामले में सजायाफ्ता हों, जिन पर 420 का मुकदमा प्रलंबित हो और जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के पुण्यफल से अर्जित नेशनल हेराल्ड में गबन किया हो ऐसी सोनिया गांधी स्वयं को किस आधार पर भ्रष्टाचार से मुक्त पाती हैं यह तो आश्चर्य की बात है.
स्टालिन का परिवार तो जेल जा चुका है, उनके कई पदाधिकारी आज भी मंत्रिमंडल में रहकर भी जेल काट रहे हैं. अरविन्द केजरीवाल के पास तो दिल्ली में पवित्रता के इतने तरणताल हैं कि जेल में रहकर उनके जेल मंत्री सत्येन्द्र जैन पवित्र है और रेपिस्ट को थेरपिस्ट बताकर मनीष सिसोदिया जेल पहुंचे थे, तब भी वो क्रान्तिकारी और शहीद भगत सिंह की केजरीवाल की दृष्टि में तुलना पाते हैं. कल तक जो केजरीवाल कांग्रेस को भ्रष्टाचारी बता रहे थे और जिस केजरीवाल को सारी की सारी कांग्रेस भ्रष्ट कह रही थी इन दोनों ने जैसे ही एक दुसरे से गले मिलने का काम किया ऐसे लगा जैसे दिल्ली में यमुना के गाद के साथ जो कीचड़ आया था उसमे नहाकर दोनों पवित्र हो गए.
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के विरोध में कांग्रेस के लोक सभा में उप-नेता अधीर रंजन चौधरी ने अपराधिक मुकदमा दायर कर रखा है. वो ममता बनर्जी आज कांग्रेस की अतिथि है जिसके खिलाफ पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र के हत्या का आरोप है, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के साथ साथ अन्य विपक्षी दलों के नेता एवं कार्यकर्ताओं के साथ मार-पीट और हत्या आरोप है. तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खिलाफ विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बहन बेटियों के साथ मार-पीट करने, गर्भवती महिलाओं के पेट चीर कर हत्या करने और बलात्कार करने का गंभीर आरोप होने बावजूद पता नहीं कांग्रेस के पास क्या तरन ताल है जो उनके साथ गठबंधन करने में उतारू है।
आज बेंगलुरु में जो कांग्रेस का जमावड़ा है तब सजयाफ्ताओं , विविध मामलों में मुक़दमे झेल रहे अपराधिक गिरोह के शक्ल में दल चलाने वाले वंशवाद के तमाम युवराज सम्मेलन कर रहे हैं. और दूसरी तरफ वंचितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले, सामान्य भारतीयों के जीवन में कल्याणकारी सत्ता की सेवा करने वाले नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक ऐसा दल और एक ऐसा गठबंधन है जिसने भारत और भारतीयता की पताका को दिग्दिगंत में गौरवान्वित किया है. निश्चित तौर पर भारत की जनता तरण ताल में कलंक को पुण्यार्जन समझने वाले जो दल हैं वो दलदल में ही रहेंगे और कमल दल सत्ता में खिलकर जनता की सेवा को समर्पित रहेगा.
लेखक -प्रेम शुक्ला (भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता )