कश्मीर में अल्पसंख्यकों, प्रवासी श्रमिकों और कर्मचारियों की लक्षित हत्याओं के बाद उनका सुरक्षित स्थानों को पलायन हुआ है। स्थिति 1990 के दशक जैसी है, जब घाटी से बड़े पैमाने पर कश्मीर पंडितों का पलायन हुआ था। यह एक राष्ट्रीय अपमान है। यह सब तब हुआ है जब कुछ दिन पहले ही वर्तमान सरकार ने अपने आठ साल के कार्यकाल को एक ऐसी सरकार के कार्यकाल के रूप में मनाया जिसने भारतीयों का शर्म से सिर झुकने नहीं दिया। ध्यान रहे, यह केवल कश्मीर तक सीमित नहीं है जिसने हाशिये के तत्वों द्वारा जातीय संहार हम सभी के लिए शर्मिंदगी का कारण बना दिया है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल के दो प्रवक्ताओं के इस्लाम के पैगंबर के बारे में उनकी बेहूदा टिप्पणियों ने भी एक तूफान खड़ा कर दिया है।
दंगे उस समय हुए जब राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और प्रमुख मंत्री योगी आदित्यनाथ कानपुर (ग्रामीण) में एक समारोह में मौजूद थे, जो हिंसा स्थल से 100 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है। यह संयोग ही है कि राज्य की राजधानी में अनुकूल माहौल बताकर जब शीर्ष उद्योगपतियों से निवेश आकर्षित करने के लिए एक मेगा समारोह की मेजबानी सरकार कर रही थी। सरकार का दावा था कि उसने अपराध और अपराधियों का खात्मा कर यह अनुकूल माहौल बनाया है। हम देश को ऐसी स्थिति में रखने का जोखिम नहीं उठा सकते।
गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) के देशों या देश में ही गुस्सा अब निलंबित भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली भाजपा के मीडिया सेल के निष्कासित प्रमुख के खिलाफ स्पष्ट था, जिन्होंने इस्लाम और उसके पैगंबर को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियां कीं। यह तब हुआ जब उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू कतर में थे और इसके उप अमीर ने अचानक भारतीय गणमान्य व्यक्ति के लिए आधिकारिक दोपहर के भोजन को रद्द कर दिया और भारतीय दूत को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिए बुलाया। यह ध्यान दिया जा सकता है कि जीसीसी देश न केवल 87 अरब डॉलर के व्यापार के चलते महत्वपूर्ण हैं बल्कि उन नौकरियों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं जो वे भारतीय प्रवासियों को प्रदान करते हैं।
जबकि अरब आक्रोश हमारे बीच व्याप्त नफरत को खत्म करने के लिए एक सन्देश है, कश्मीर की स्थिति सभी हितधारकों को कट्टरपंथी समूहों को कमजोर और शान्ति से हासिल हुए लाभों को और आगे बढ़ाने का आह्वान करती है न कि फिर से आतंकवाद के काले दौर की तरफ लौटने के लिए। काम कठिन है क्योंकि कट्टरपंथियों ने अब और भयानक तरीके अपना लिए हैं जिनमें गोली मारो और भागो की नीति शामिल है। उनका उद्देश्य एक को मार कर हजारों को आतंकित करना है। फिलहाल प्राथमिकता 30 जून से 11 अगस्त तक होने वाली अमरनाथ यात्रा में सुरक्षा पुख्ता करने की है ताकि भय और चिंता की भावना को दूर किया जा सके।