जैसे की सभी अनुमान थे, मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। खड़गे 26 अक्टूबर को देश की सबसे पूरानी राजनीतिक पार्टी की अध्यक्षता संभालेंगे। अध्यक्ष पद के लिए उन्हें चुनौती शशि थरूर से मिली थी, जिसे उन्होंने अपेक्षाकृत आसानी से जीत लिया। अब कई चुनौतियाँ उनके सामने हैं। पार्टी को नई ऊर्जा की सख्त जरूरत है। खड़गे गतिशील नेता रहे हैं लेकिन उन्हें सभी को साथ लेकर चलना होगा। उनके अपेक्षकृत बुजुर्ग कंधों को न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं बल्कि भारत के उन सभी लोगों की उम्मीदों का बोझ उठाना है, जो उम्मीद करते हैं कि लड़खड़ाती पार्टी जल्द ही अपने पैर जमा लेगी। खड़गे को किसी गुट विशेष के प्रतिनिधि होने का टैग हटाना होगा, और उनका शुरुआती लक्ष्य पार्टी की उदयपुर घोषणा होनी चाहिए। इस घोषणा में एक से ज्यादा पद पर नहीं रहने और पार्टी को मुट्ठी भर परिवारों की बपौती नहीं बनाये रखने की कसम खाई गयी थी। अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद खड़गे की पहली तस्वीरों में उनके बेटे, एक कांग्रेसी राजनेता, फ्रेम में थे, जो खराब संदेश देते हैं। भारतीय जनता पार्टी की समग्र राजनीति को चुनौती देने में सक्षम होने के लिए कांग्रेस के पास विभिन्न जातियों, लिंगों, क्षेत्रों और पेशेवर और सामाजिक पृष्ठभूमि के लिए एक निष्पक्ष और अधिक संतुलित प्रतिनिधित्व का होना जरूरी है। नए अध्यक्ष के रूप में, खड़गे को कांग्रेस को लड़ाई के मोड में लाना होगा और पार्टी को एक नवीन विचार देकर एक स्पष्ट नैतिक उद्देश्य के साथ तमाम संभावित भागीदारों और व्यापक जनता तक पहुंचना होगा। गांधी परिवार के तीन सदस्य कांग्रेस में मजबूत बने रहेंगे। खुद खड़गे का चुनाव अपने आप में इसका बड़ा प्रमाण है। भले गांधी परिवार की राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को शीर्ष पर स्थापित करने की मूल योजना गड़बड़ा गई, खड़गे भी गांधी परिवार के ही प्रतिनिधि कहलाते हैं। हाँ, कांग्रेस इस तथ्य पर गर्व कर सकती है कि उसने चुनाव करवाकर आंतरिक पार्टी लोकतंत्र के मानकों को जीवित किया। इसके बावजूद चुनाव के दौरान कई नेताओं का खुले रूप से खड़गे के पक्ष में आना जरूर एक गलती थी, जिस से बचा जा सकता था।